दिल तो है मिलने को आतुर जानती हो तुम सखे
है तड़प दोनो तरफ क्या मानती हो तुम सखे
है झिझक बस प्यार मे कि कब उठे पहला कदम
हो पहल उस प्यार की क्या सोचती हो तुम सखे
आँखों की गहराईयों में डूब कर मैं खो गया
प्यासी आँखों से मुझे नित खोजती हो तुम सखे
मैं छवि खुद की निहारूँ होतीं आँखे चार जब
पाश बनकर प्रेम का नित बाँधती हो तुम सखे
हो के व्याकुल नित चकोरी ढूँढती है चाँद को
इस तरह शायद सुमन को चाहती हो तुम सखे
Wednesday, July 20, 2011
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रचना में विस्तार
साहित्यिक बाजार में, अलग अलग हैं संत। जिनको आता कुछ नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक मैदान म...
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अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत से कब हुआ, देश अपन ये मुक्त? जाति - भेद पहले बहुत, अब VIP युक्त।। धर्म सदा कर्तव्य ह...
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गन्दा फिर तालाब
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
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लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते लेकिन बात कहाँ कम करते गंगा - गंगा पहले अब तो गंगा, यमुना, जमजम करते विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
16 comments:
बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल...
Nihayat sundar gazal!
सुन्दर भाव गज़ल के ..अच्छी प्रस्तुति
बहुत खुब। सुदंर गजल।
bahut sundar gazal .
बहुत खुब......
बहुत सुन्दर।
भावों को कुशलता से अभिव्यक्त किया है. अति सुंदर.
बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल..
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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बहुत सुन्दर भावभिव्यक्ति...
Kamal ki gajal likhi hai apne.
Jai hind jai bharat
bahut hi pyara geet ..shyamal ji..
GAZAL TO HOTI HI KHOOBSURAT HAI. AAPNE ISKI JATIYA KHOOBSURATI KO AUR CHATAKH BANAYA HAI. SHUBHECHHAYEN....AVINASH JSR
आँखों की गहराईयों में डूब कर मैं खो गया
प्यासी आँखों से मुझे नित खोजती हो तुम सखे
बहुत ही खुबसूरत....दिल से बधाई स्वीकारें।
दिल तो है मिलने को आतुर जानती हो तुम सखे
है तड़प दोनो तरफ क्या मानती हो तुम सखे
दिया लेकर, भरी बरसात में, उस पार जाना
उधर पानी, इधर है आग, दोनों से निभाना
मैं छवि खुद की निहारूँ होतीं आँखे चार जब
पाश बनकर प्रेम का नित बाँधती हो तुम सखे
गमो को दर पे छोड़ तुझे ही ढूँढता है दिल
इन्तजार करती हूँ दिन रात आ मुझे मिल
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