Thursday, July 21, 2011

बात वो लिखना ज़रा

भावना का जोश दिल में सीख लो रूकना ज़रा
हो नजाकत वक्त की तो वक्त पे झुकना ज़रा

जो उठाते जिन्दगी में हर कदम को सोच कर
जिन्दगी आसान बनकर तब लगे अपना ज़रा

लोग तो मजबूर होकर मुस्कुराते आज कल
है सहज मुस्कान पाना क्यों कठिन कहना ज़रा

टूटते तो टूट जाएँ पर सपन जिन्दा रहे
जिन्दगी है तबतलक ही देख फिर सपना ज़रा

दूरियाँ अपनों से प्रायः गैर से नजदीकियाँ
स्वार्थ अपनापन में हो तो दूर ही रहना ज़रा

खेल शब्दों का नहीं अनुभूतियों के संग में
बात लोगों तक जो पहुंचे बात वो लिखना ज़रा

जिन्दगी से रूठ कर के क्या करे हासिल सुमन
अबतलक खुशियाँ मिली
वो याद कर चलना ज़रा

7 comments:

दर्शन कौर धनोय said...

जिन्दगी से रूठ कर के क्या करे हासिल सुमन
सारी खुशियों को समेटो कर शुरू जीना ज़रा

सही कहा जी ,खुशियां ही सब के जीवन में आणि चाहिए ..वरना दुःख तो हर कोई दे जाता हैं !

SAJAN.AAWARA said...

Lajwab, behtreen rachna,
kamal kar diya apne,,
jai hind jai bharat........

रंजना said...

खेल शब्दों का नहीं अनुभूतियों के संग में
बात लोगों तक जो पहुंचे बात वो लिखना ज़रा

कितना सही कहा आपने...

इस धर्म को जो अपनाए,वही सही मायने में रचनाकार है...

बहुत ही सुन्दर रचना रची आपने...सदैव की भांति...

Kailash Sharma said...

जिन्दगी से रूठ कर के क्या करे हासिल सुमन
अबतलक खुशियाँ मिली जो याद कर चलना ज़रा..

बहुत सुन्दर गज़ल...हरेक शेर एक सार्थक सन्देश देता हुआ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

लोग तो मजबूर होकर मुस्कुराते आज कल
है सहज मुस्कान पाना क्यों कठिन कहना ज़रा

टूटते तो टूट जाएँ पर सपन जिन्दा रहे
जिन्दगी है तबतलक ही देख फिर सपना ज़रा

वाह ..बहुत खूबसूरत बात कही है ..लाजवाब गज़ल ..

प्रवीण पाण्डेय said...

खुशी याद कर बढ़ते जायें,
जितना संभव चढ़ते जायें।

Anonymous said...

दूरियाँ अपनों से प्रायः गैर से नजदीकियाँ
स्वार्थ अपनापन में हो तो दूर ही रहना ज़रा

ऐसा ही सही
ताली दो हाथों से

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