Monday, September 5, 2011

मन से मन का मेल

हँसना रोना जिन्दगी, मगर मूल है प्यार।
मिले सुमन को प्यार में, काँटे कई हजार।।

एक तरफ का प्यार क्या, दूजा जब अनजान।
नहीं सुमन सम्वाद तब, भीतर से हलकान।।

बेचैनी में दिन कटे, खुली आँख में रात।
समझेगा तब कौन जो, सुमन हृदय जज्बात।।

बिना प्यार की जिन्दगी, बस गुड़ियों का खेल।
अनुपम है वो पल सुमन, मन से मन का मेल।।

परम्परा सौतन कभी, सुमन कभी अज्ञान।
खोते पल जो प्यार के, बने हुए नादान।।

होते अक्सर साथ में, लेकिन मन से दूर।
हाल यही प्रायः सुमन, लोग दिखे मजबूर।।

छोटी सी ये जिन्दगी, गिने सुमन दिन रैन।
यादों में वो पल जहाँ, मिले नैन से नैन।।

17 comments:

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर कविता आपकी कलम से !
आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !

Pallavi saxena said...

waha....बेचैनी में दिन कटे खुली आँख में रात
काश समझता गर कोई बिन बोले जज्बात
bahut khoob sir kaash kabhi koi kisi ke jazbaat bina bole hee samjh saktaa to baat hee kyaa thi...

दर्शन कौर धनोय said...

हँसना रोना जिन्दगी मगर मूल है प्यार
और प्यार के दर्द में काँटे कई हजार..

Bahut sunder kavita ha...

छोटी सी ये जिन्दगी सुमन गिने दिन रैन
यादों में वो पल जहाँ मिले नैन से नैन

गुड्डोदादी said...

श्यामल जी
आशीर्वाद

बहुत ही बेमिसाल कविता
एक एक शब्द माला के मनके में हैं पिरोये हुए

Sunil Kumar said...

अक्सर होते साथ में लेकिन मन से दूर
हाल यही प्रायः सभी लोग दिखे मजबूर
बहुत सुंदर सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी

भूली दास्तान said...

अक्सर होते साथ में लेकिन मन से दूर
हाल यही प्राय:सभी लोग दिखे मजबूर

ऐसा क्यों ?
ये कैसी अजब मोहब्बत की कहानी हैं
हर दिल के अरमानो की रवानी है
किसी के दिल का मोती है
तो किसी की आँख का पानी हैं

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रेम की परम्परा, सदा की भाँति भावमयी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भावप्रवण रचना

kshama said...

बिना प्यार के जिन्दगी बस गुड़ियों का खेल
पल अनुपम वो है सदा मन से मन का मेल

परम्परा सौतन कभी और कभी अज्ञान
खोते जो पल प्यार के बन जाते नादान

अक्सर होते साथ में लेकिन मन से दूर
हाल यही प्रायः सभी लोग दिखे मजबूर
Yahee to raaz hai jeewan kaa!

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

बिना प्यार के जिन्दगी बस गुड़ियों का खेल
पल अनुपम वो है सदा मन से मन का मेल

aapki ghazlein behad shandar hoti hain..aapke utkris lekhan ki kadi mein judi yad rachna bhi mujhe behad bhayee..sadar pranam ke sath

vijay kumar sappatti said...

बहुत सुन्दर कविता श्यामल जी . बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आया हूँ . आपकी रचनाये बहुत कुछ सिखा जाती है..

आपको बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बेचैनी में दिन कटे खुली आँख में रात
काश समझता गर कोई बिन बोले जज्बात..
वाह वाह ... बढ़िया दोहे हैं भईया...
सादर...

गुड्डोदादी said...

रेत में जगती नदी में दबे सपने उभरने लगे
भूलाने पर भी नहीं भूले फिर याद आने लगे

मितवा said...

बिना प्यार के जिन्दगी बस गुड़ियों का खेल
पल अनुपम वो है सदा मन से मन का मेल


तूफ़ान आने के बाद घर बस गया खुशियों से
अतीत की हूंक में वापिस नहीं जाना

नीला said...

कब निकला है कोई दिल में उतर जाने के बाद

बाहर जाने का कोई और गली का रास्ता ही नहीं

भूली दास्तान said...

मुद्दतों से तेरी राहों खड़े हैं जालिम

कभी पूछ तो ले हमारी तमन्ना क्या है

चिरागे मोहब्बत बुझाया कहाँ है

ख्याल उनका दिल भूलाया कहाँ है

छमियां said...

खुशियाँ दूर ही कब थी जीवन में
वह तो अंधेरों से रास्ता मांग रही हैं

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!