संग तुम्हारे जो पल बीते, याद वही पल आते हैं
शायद वैसे पल फिर आए, मन को यह समझाते हैं
आँखों से बातें होतीं थीं, सुनते भी थे आँखों से
बेहोशी में होश की बातें, करके हम पछताते हैं
अनजाने राही थे फिर भी, न जाने क्यों मेल हुआ
समझ लिया जब इक दूजे को, दूर चले वो जाते हैं
शोर मची है दोनों दिल में, फिर से पास बुलाओ ना
बीच खड़ी ये जालिम दुनिया, गीत विरह के गाते हैं
गहरी आस मिलन की दिल में, सुमन संजोते रोज यहाँ
ना जाने इक टीस है फिर भी, जिसको खुद सहलाते हैं
Saturday, December 17, 2011
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रचना में विस्तार
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अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत से कब हुआ, देश अपन ये मुक्त? जाति - भेद पहले बहुत, अब VIP युक्त।। धर्म सदा कर्तव्य ह...
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गन्दा फिर तालाब
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
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मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
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लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते लेकिन बात कहाँ कम करते गंगा - गंगा पहले अब तो गंगा, यमुना, जमजम करते विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
22 comments:
अनजाने राही थे फिर भी, न जाने क्यों मेल हुआ
समझ लिया जब इक दूजे को, दूर चले वो जाते हैं
..behtarin panktiyan
mere blog par bhi aapka swagat hai
अनजाने राही थे फिर भी, न जाने क्यों मेल हुआ
समझ लिया जब इक दूजे को, दूर चले वो जाते हैं
बहुत गजब दार
बैठी हूँ यादों को पिरोय रुला के गया सपना तेरा
आँखों से बातें होतीं थीं, सुनते भी थे आँखों से
बेहोशी में होश की बातें, करके हम पछताते हैं
खूबसूरत गज़ल
स्मृतियों का एक समुन्दर, तुमने यूँ ही रच डाला,
अब कौन किनारों को ढूढ़े, हम बीच पड़े उतराते हैं
गहरी आस मिलन की दिल में, सुमन संजोते रोज यहाँ
ना जाने इक टीस है फिर भी, जिसको खुद सहलाते हैं
गजब का शेर , मुबारक हो ......
शोर मची है दोनों दिल में, फिर से पास बुलाओ ना
बीच खड़ी ये जालिम दुनिया, गीत विरह के गाते हैं
बहुत बढ़िया ग़ज़ल सर...
सादर.
श्यामल
आशीर्वाद
बहुत सुंदर कविता बधाई सवीकार करें
गा कर वीडियो भेजिये दादी को
गहरी आस मिलन की दिल में, सुमन संजोते रोज यहाँ
ना जाने इक टीस है फिर भी, जिसको खुद सहलाते हैं
khoobasoorat gazal
बहुत सुंदर मन के भाव ...बेहतरीन ग़ज़ल....
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा आज दिनांक 19-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत सुन्दर रचना ..
बहुत बढ़िया!
शोर मची है दोनों दिल में, फिर से पास बुलाओ ना
बीच खड़ी ये जालिम दुनिया, गीत विरह के गाते हैं
waah
बहुत सुन्दर गीत ....
खूबसूरत गज़ल...
गजब की गजल
बधाई स्वीकार करें लिखने की कलम ठंडी ना करें
हरी घास पर ओस की बूंदे बाढ़ की तरह थी
अकेला आकाश बहुत रोया होगा वियोग में
आज तो रचना प्रेम रस से सराबोर है.....
बहुत बहुत सुन्दर..और क्या कहूँ...?
श्यामल
आशीर्वाद
गजल बहुत ही धमाकेदार
जिसे पढ़ कर
हरी घास पर ओस की बूंदे बाढ़ की तरह थी
अकेला आकाश बहुत रोया होगा वियोग में
आँखों से बातें होतीं थीं, सुनते भी थे आँखों से
बेहोशी में होश की बातें, करके हम पछताते हैं
khoobsoorat ehsaas...lekin pachhtava.....
bilkul nahin....
.
Guddo Dadi
जिसको खुद सहलाते हैं
संग तुम्हारे जो पल बीते, याद वही पल आते हैं
शायद वैसे पल फिर आए, मन को यह समझाते हैं
आँखों से बातें होतीं थीं, सुनते भी थे आँखों से
बेहोशी में होश की बातें, करके हम पछताते हैं
अनजाने राही थे फिर भी, न जाने क्यों मेल हुआ
समझ लिया जब इक दूजे को, दूर चले वो जाते हैं
शोर मची है दोनों दिल में, फिर से पास बुलाओ ना
बीच खड़ी ये जालिम दुनिया, गीत विरह के गाते हैं
गहरी आस मिलन की दिल में, सुमन संजोते रोज यहाँ
ना जाने इक टीस है फिर भी, जिसको खुद सहलाते हैं
Posted by श्यामल सुमन at 7:16 PM 2 comments
Labels: ग़ज़ल
पसंद · · साझा करें · 18 दिसंबर को 00:42 बजे
Shyam Sunder, Ketan Anand, Sawai Suthar और 4 अन्य को यह पसंद है..
Guddo Dadi सुजाता जी धन्यवाद किसी का प्यार किसी का विछोड़ा समझो थोडा थोडा
18 दिसंबर को 04:31 बजे · पसंद.
Guddo Dadi अर्जन मीरचंदानी नन्हें भाई बहुत बहुत धन्यवाद
18 दिसंबर को 04:31 बजे · पसंद.
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सुभानअल्लाह क्या तूफानी लफज है गजल में
सर्द की रातों में दिल की रेत तप गई
मुआ चाँद भी बादलों की ओट छुप गया
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