कुदाल - सी नीयत प्रायः, बदल रहा परिवेश।
बचेगा, कैसे भारत देश?
बड़े हुए पढ़ते, सुनते हम, यह धरती है पावन।
जहां पे कचड़े चुन चुन करके, चलता लाखों जीवन।
दिल्ली में नित होली, दिवाली मगर गाँव में क्लेश।
बचेगा, कैसे भारत देश?
रक्षक से अब डर ऐसा कि, जन - जन चौंक रहे हैं।
बहस के बदले अब संसद में, लगता भौंक रहे हैं।
लोकतंत्र के इस मंदिर से, कैसा यह सन्देश?
बचेगा, कैसे भारत देश?
सजग सुमन हों अगर चमन के, होगा तभी निदान।
अगर भ्रष्ट भाई भी हो तो, क्यों उसका सम्मान?
आजादी के नव - विहान का, निकले तभी दिनेश।
बचेगा, ऐसे भारत देश।।
6 comments:
gahan ..soch deti hui sarthak rachna ...!!badhai ..
श्यामल
आशीवाद
लोकतंत्र के इस मंदिर से, यह कैसा सन्देश?
कैसे बचेगा भारत देश?
जहां पे कचड़े चुन चुन करके, चलता लाखों जीवन।
जन और देश की व्यथा है नहीं घटने वाला कलेश
श्यामल
आशीर्वाद
है कुदाल सी नीयत प्रायः, बदल रहा परिवेश।
कैसे बचेगा भारत देश?
कुदाल ही जड़ लोभ लालच की खुरपी बन जाते तो बच जाता घर परिवार और देश देश
है रक्षक से डर ऐसा कि, जन जन चौंक रहे हैं।
बहस कहाँ संसद में होती, लगता भौंक रहे हैं ..
सच कहा है सुमन जी ... हालात लगातार गिर रहे हैं देश की और ऐसे में आपकी चिंता वाजिब है ...
चिंता स्वाभाविक ही है. बढ़िया रचना.
चिँतनीय विषय । खैर कुछ आशा के किरण नजर आ रहे है । आप अपनी ही कविता पर नज़र डाल कर तस्सली दे सकते है खुद को कि , अब तिहार मेँ कितने मंत्री , बतियाते आपस मेँ संतरी ।
जाने और न कितने आये , क्या तिहार संसद बन जाये ?
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एक और ऊम्दा रचना ।
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