Thursday, February 23, 2012

सुमन यहाँ जलते दिन-रात

मिहनत जो करते दिन-रात
वो दुख में रहते दिन-रात

सुख देते सबको निज-श्रम से
तिल-तिल कर मरते दिन-रात

मिले पथिक को छाया हरदम
पेड़, धूप सहते दिन-रात

बाहर से भी अधिक शोर क्यों
भीतर में सुनते दिन-रात

दूजे की चर्चा में अक्सर
अपनी ही कहते दिन-रात

हृदय वही परिभाषित होता
प्रेम जहाँ बसते दिन-रात

मगर चमन का हाल तो देखो
सुमन यहाँ जलते दिन-रात

16 comments:

Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर विचार और उत्कृष्ट प्रस्तुति ...!!

गुड्डोदादी said...

श्यामल
आशीर्वाद

बाहर से भी अधिक शोर क्यों
भीतर में सुनते दिन-रात

बहुत ही मार्मिक
तेरा दर्द न जाने कोए
तू भीतर भीतर रोये

kshama said...

बाहर से भी अधिक शोर क्यों
भीतर में सुनते दिन-रात

दूजे की चर्चा में अक्सर
अपनी ही कहते दिन-रात
Bahut khoob!
Kabhi mere blogpe bhee aayen! Achha lagega!

vandana gupta said...

वाह वाह वाह …………शानदार रचना मन मे उतर गयी।

vidya said...

वाह वाह...........
बाहर से भी अधिक शोर क्यों
भीतर में सुनते दिन-रात

बेहतरीन......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!

Anupama Tripathi said...

कल शनिवार 25/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .

धन्यवाद!

कमल कुमार सिंह (नारद ) said...

सुन्दर रचना ,
बधाई ,
सादर

प्रवीण पाण्डेय said...

स्वयं जल कर औरों को रोशनी देते अच्छे लोग..

मेरा मन पंछी सा said...

बहूत हि सुंदर
प्रभावशाली हा अभिव्यक्ती...

विभूति" said...

गहन अभिवयक्ति......

Anju (Anu) Chaudhary said...

हृदय वही परिभाषित होता
प्रेम जहाँ बसते दिन-रात.....


जहाँ प्रेम बसता....वहीँ जग का हर दिल रमता...

Anju (Anu) Chaudhary said...

हृदय वही परिभाषित होता
प्रेम जहाँ बसते दिन-रात...


इस प्रेम पाती की हैं अनोखी
जिस बिन दुनिया हैं अधूरी ...अनु

Rachana said...

sunder bhavon se saji rachna
badhai
rachana

नीलू said...

आँखों का नशा ही और है
इनमे तेरी सूरत बसी है

चारों ओर शोर ही शोर है
पहले था अब नहीं नोर है

मधु झा said...

तेरी ही यादों में सोया हूँ प्रिय
मोतिये का फूल मार् के जगा देना

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