विश्व बना है ग्राम देखिये
है साजिश, परिणाम देखिये
होती खुद की जहाँ जरूरत
छूते पैर, प्रणाम देखिये
सेवक ही शासक बन बैठा
पिसता रोज अवाम देखिये
दिखते हैं गद्दी पर कोई
किसके हाथ लगाम देखिये
लिए कमण्डल चोर हाथ में
और तपस्वी जाम देखिये
बीते कल के अखबारों सा
रिश्तों का अन्जाम देखिये
वफा, मुहब्बत भी बाजारू
मुस्कानों का दाम देखिये
धीरे धीरे देश के अन्दर
सुलग रहा संग्राम देखिये
चाह सुमन की पुरी में अल्ला
और काबा में राम देखिये
है साजिश, परिणाम देखिये
होती खुद की जहाँ जरूरत
छूते पैर, प्रणाम देखिये
सेवक ही शासक बन बैठा
पिसता रोज अवाम देखिये
दिखते हैं गद्दी पर कोई
किसके हाथ लगाम देखिये
लिए कमण्डल चोर हाथ में
और तपस्वी जाम देखिये
बीते कल के अखबारों सा
रिश्तों का अन्जाम देखिये
वफा, मुहब्बत भी बाजारू
मुस्कानों का दाम देखिये
धीरे धीरे देश के अन्दर
सुलग रहा संग्राम देखिये
चाह सुमन की पुरी में अल्ला
और काबा में राम देखिये
13 comments:
वाह ...बहुत खूबसूरत गजल
चाह सुमन की पुरी में अल्ला
और काबा में राम देखिये
वाह!
वाह....
बीते कल के अखबारों सा
रिश्तों का अन्जाम देखिये
खूबसूरत गज़ल........
श्यामल आशीर्वाद
बहुत ही सुंदर ठोस व्यंग
बीते कल के अखबारों सा
रिश्तों का अन्जाम देखिये
माँता पिता को प्रणाम नहीं
गली में भीख मांगते देखिये
गजब का लिखे हैं सर!
सादर
खूबसूरत गज़ल..
बीते कल के अखबारों सा
रिश्तों का अन्जाम देखिये
बहुत खूब क्या बात है सोलह आने सही, मुबारक हो
sarthak post.badhai .NAVSAMVATSAR KI HARDIK SHUBHKAMNAYEN !shradhey maa !
बेहतरीन रचना, उत्कृष्ट भाव, सरल शब्द और पूर्ण गेयता।
तीखी धार है आपकी लेखनी में ...
आनंद आ गया !
शुभकामनायें आपको !
bahut behtreen ghazal.
धीरे धीरे देश के अन्दर
सुलग रहा संग्राम देखिये
चाह सुमन की पुरी में अल्ला
और काबा में राम देखिये
aamin Suman ji
bahut hi sundar gazal...
kunwar ji,
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