Tuesday, March 20, 2012

और काबा में राम देखिये

विश्व बना है ग्राम देखिये
है साजिश, परिणाम देखिये

होती खुद की जहाँ जरूरत
छूते पैर, प्रणाम देखिये

सेवक ही शासक बन बैठा
पिसता रोज अवाम देखिये

दिखते हैं गद्दी पर कोई
किसके हाथ लगाम देखिये

लिए कमण्डल चोर हाथ में
और तपस्वी जाम देखिये

बीते कल के अखबारों सा
रिश्तों का अन्जाम देखिये

वफा, मुहब्बत भी बाजारू
मुस्कानों का दाम देखिये

धीरे धीरे देश के अन्दर
सुलग रहा संग्राम देखिये

चाह सुमन की पुरी में अल्ला
और काबा में राम देखिये

13 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाह ...बहुत खूबसूरत गजल

अनुपमा पाठक said...

चाह सुमन की पुरी में अल्ला
और काबा में राम देखिये
वाह!

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह....
बीते कल के अखबारों सा
रिश्तों का अन्जाम देखिये

खूबसूरत गज़ल........

गुड्डोदादी said...

श्यामल आशीर्वाद
बहुत ही सुंदर ठोस व्यंग


बीते कल के अखबारों सा
रिश्तों का अन्जाम देखिये

माँता पिता को प्रणाम नहीं
गली में भीख मांगते देखिये

Yashwant R. B. Mathur said...

गजब का लिखे हैं सर!


सादर

संजय भास्‍कर said...

खूबसूरत गज़ल..

Sunil Kumar said...

बीते कल के अखबारों सा
रिश्तों का अन्जाम देखिये
बहुत खूब क्या बात है सोलह आने सही, मुबारक हो

Shikha Kaushik said...

sarthak post.badhai .NAVSAMVATSAR KI HARDIK SHUBHKAMNAYEN !shradhey maa !

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन रचना, उत्कृष्ट भाव, सरल शब्द और पूर्ण गेयता।

Satish Saxena said...

तीखी धार है आपकी लेखनी में ...
आनंद आ गया !
शुभकामनायें आपको !

Rajesh Kumari said...

bahut behtreen ghazal.

निर्झर'नीर said...

धीरे धीरे देश के अन्दर
सुलग रहा संग्राम देखिये

चाह सुमन की पुरी में अल्ला
और काबा में राम देखिये

aamin Suman ji

kunwarji's said...

bahut hi sundar gazal...

kunwar ji,

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