Saturday, April 14, 2012

सुमन अंत में सो जाए

कैसा उनका प्यार देख ले
आँगन में दीवार देख ले
दे बेहतर तकरीर प्यार पर
घर में फिर तकरार देख ले

दीप जलाते आँगन में
मगर अंधेरा है मन में
समाधान हरदम बातों से
व्यर्थ पड़े क्यूँ अनबन में

अब के बच्चे आगे हैं
रीति-रिवाज से भागे हैं
संस्कार ही मानवता के
प्राण-सूत्र के धागे हैं

सुन्दर मन काया सुन्दर
ये दुनिया, माया सुन्दर
सभी मसीहा खोज रहे हैं
बस उनकी छाया सुन्दर

मन बच्चों सा हो जाए
सभी बुराई खो जाए
गुजरे जीवन इस प्रवाह में
सुमन अंत में सो जाए

9 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह..........
बेहद निर्मल कोमल सी रचना.............

सादर.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मन बच्चों सा हो जाए
सभी बुराई खो जाए
गुजरे जीवन इस प्रवाह में
सुमन अंत में सो जाए

बहुत सुंदर भाव लिए हुये .... बच्चे जैसा कहाँ कोई मासूम रह पाता है

गुड्डोदादी said...

श्यामल \
आशीर्वाद

दीप जलाते आँगन में
मगर अंधेरा है मन में

अति सुंदर मन को छूती कविता

संजय भास्‍कर said...

कैसा उनका प्यार देख ले
आँगन में दीवार देख ले
दे बेहतर तकरीर प्यार पर
फिर उनका तकरार देख ले
.........अपने बहुत सहजता से समझा दिया
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है !!!

प्रवीण पाण्डेय said...

बच्चों सा मन, बच्चों सी नींद..

udaya veer singh said...

बहुत सुंदर भाव लिए कोमल रचना.............

udaya veer singh said...

बहुत सुंदर भाव लिए कोमल रचना.............

shyam gupta said...

मन बच्चों सा हो जाए
सभी बुराई खो जाए----- अच्छे, सुन्दर भाव हैं...पर भाव क्या करें..
---अब के बच्चे आगे हैं
---रीति-रिवाज से भागे हैं....सुन्दर...

---कुछ असंयमित भाव भी हैं...यथा..

है आसान उन्हीं का जीवन
प्यार खोज ले सौतन में

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मन बच्चों सा हो जाए
सभी बुराई खो जाए
गुजरे जीवन इस प्रवाह में
सुमन अंत में सो जाए,...

बहुत सुंदर सरल कोमल रचना...बेहतरीन पोस्ट के लिए, श्यामल जी... बहुत२ बधाई,...

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