मुस्कानों में बात कहो
चाहे दिन या रात कहो
चाल चलो शतरंजी ऐसी
शह दे कर के मात कहो
जो कहते हैं राम नहीं
उनको समझो काम नहीं
याद कहाँ भूखे लोगों को
उनका कोई नाम नहीं
अखबारों का छपना देखा
लगा भयानक सपना देखा
खबरों की इस महाभीड़ में
खबर कोई न अपना देखा
मिलते हैं भगवान् नहीं
आज नेक सुलतान नहीं
बाहर की बातों को छोडो
मैं खुद भी इंसान नहीं
अनबन से क्या मिलता है
जीवन व्यर्थ में हिलता है
भूलो दुख और खुशी समेटो
सुमन खुशी से खिलता है
चाहे दिन या रात कहो
चाल चलो शतरंजी ऐसी
शह दे कर के मात कहो
जो कहते हैं राम नहीं
उनको समझो काम नहीं
याद कहाँ भूखे लोगों को
उनका कोई नाम नहीं
अखबारों का छपना देखा
लगा भयानक सपना देखा
खबरों की इस महाभीड़ में
खबर कोई न अपना देखा
मिलते हैं भगवान् नहीं
आज नेक सुलतान नहीं
बाहर की बातों को छोडो
मैं खुद भी इंसान नहीं
अनबन से क्या मिलता है
जीवन व्यर्थ में हिलता है
भूलो दुख और खुशी समेटो
सुमन खुशी से खिलता है
10 comments:
भावों और शब्दों का उत्कृष्ट संयोजन
मिलते हैं भगवान् नहीं
आज नेक सुलतान नहीं
बाहर की बातों को छोडो
मैं खुद भी इंसान नहीं
सुन्दर, आत्मनिरीक्षण जरूरी है।
वाह............................
बहुत ही बढ़िया मुक्तक.................
लाजवाब!!!!!
अनबन से क्या मिलता है
जीवन व्यर्थ में हिलता है
भूलो दुख और खुशी समेटो
सुमन खुशी से खिलता है
बहुत सुंदर और सार्थक संदेश ...अच्छी रचना
श्यामल
आशीर्वाद
विहल शब्दों से ओतप्रोत
याद कहाँ भूखे लोगों को
उनका कोई नाम नहीं
अनबन से क्या मिलता है
जीवन व्यर्थ में हिलता है
काश रूमाल से आँसू पोछ दिए होते
टूटे रिश्ते और जख्म भर गए होते
हमारी टिप्पणी खोजिये स्पाम से...
मुक्तकों की तारीफ़ व्यर्थ ना जाये....
सादर.
वाह..बहुत सुंदर कविता..सच में, theory और हकीक़त के बीच की दूरी को नापना बहुत मुश्किल होता है कभी कभी..
बहुत ही सुन्दर, खुशी समेटने का मन बन गया है।
वाह! जी वाह! बहुत ख़ूब
कृपया इसे भी देखें-
उल्फ़त का असर देखेंगे!
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