Tuesday, April 17, 2012

वक्त होता क्या किसी का?

वक्त   से   टकरा  सके  तो,  जिन्दगी  श्रृंगार  है
वक्त  खुशियाँ  वक्त  पर  दे,  वक्त  ही  दीवार है

वक्त  कितना  वक्त  देता,  वक्त  की  पहचान हो
वक्त  मरहम  जो  समय  पर, वक्त  ही  अंगार है

वक्त  से  आगे  निकलकर, सोचते  जो  वक्त पर
वक्त  के  इस  रास्ते  पर,  फूल  और  तलवार है

क्या  है  कीमत  वक्त की, जो चूकते, वो जानते
वक्त  उलझन  दे  कभी  तो, वक्त  पर  उद्धार है

वक्त होता क्या किसी का, चाल अपनी वक्त की
चल  सुमन  उस चाल में तो, खार में भी प्यार है

9 comments:

RITU BANSAL said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल !
kalamdaan

गुड्डोदादी said...

श्यामल
आशीर्वाद
वक्त कितना वक्त देता, वक्त की पहचान हो
वक्त मरहम जो समय पर, वक्त ही अंगार है




आपकी लेखनी नहीं एक जलती मशाल है
जीवन के दुखी भावों का विशाल भण्डार है

प्रवीण पाण्डेय said...

संबंधों का स्वाद खट्टा मीठा होता है, खारा भी हो जाता है कभी भी।

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत खूब..............


क्या है कीमत वक्त की, जो चूकते, वो जानते
वक्त उलझन जिन्दगी की, वक्त से उद्धार है
very nice...
anu

Pratik Maheshwari said...

वाह वाह!
क्या बेहतरीन परिभाषित किया है वक़्त को..

M VERMA said...

खार नहीं तो प्यार का एहसास भी नहीं
सुन्दर गज़ल

M VERMA said...

खार नहीं तो प्यार का एहसास भी नहीं
सुन्दर गज़ल

M VERMA said...

खार नहीं तो प्यार का एहसास भी नहीं
सुन्दर गज़ल

poonam said...

sunder bahv

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