Friday, April 20, 2012

तंत्र का नया मंत्र

लोकतंत्र! हाँ! लोकतंत्र। 
जिसके वजूद में है,
पहले "लोक", बाद में "तंत्र"।

लेकिन अभी लोकतंत्र में,
पढ़ाया जा रहा है,
 "तंत्र" का नया "मंत्र"।

 खूब गौर से देखें श्रीमती - श्रीमान!
आपके सामने, चारों तरफ,
बिखरे हैं इसके बुरे परिणाम,
नीयत - नैतिकता बेलगाम।

नागरिक को वैचारिक रूप से,
बनाया जा रहा है,
प्रजा-रूपी एक "यंत्र"

और फिर!
"तंत्र" - "स्वतंत्र",
"लोक" - "परतंत्र",
क्या इसी तरह विकसित होगा,
हमारा अर्जित लोकतंत्र??

10 comments:

गुड्डोदादी said...

श्यामल
आशीर्वाद

कड़वा सच का लेखा


तंत्र की राजनीति में हम कहाँ स्वतंत्र

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Kailash Sharma said...

मानव बना यंत्र
और
तंत्र - स्वतंत्र,
लोक - परतंत्र।

...बहुत खूब ! बिलकुल सटीक कथन..

सचिन लोकचंदानी said...

श्यामल्जी नमस्कार !



बहुत बढ़िया रचना .....

प्रवीण पाण्डेय said...

तन्त्र का मन्त्र....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

लोकेन्द्र सिंह said...

बहुत बढ़िया ..........

Unknown said...

लोकतंत्र कि वर्तमान परिभाषा ही है तंत्रो का तंत्रो के लिए तंत्रो के द्वारा किया गया शासन है । इसमे आम आदमी की जगह धीरे धीरे सिकुड़ती जा रही है ।

Asha Joglekar said...

Tantr ka yantr chal raha hai aur Lok partantr ho rahe hai.
sarthak prastuti.

जीवन सफ़र said...

महामंत्र वाह....

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