लेखन में प्रतिबंध मुझे स्वीकार नहीं
प्रायोजित रचना से कोई प्यार नहीं
बच के रहना साहित्यिक दुकानों से
जी कर लिखता हूँ कोई बीमार नहीं
मठाधीश की आज यहाँ बन आई है
कितने डर से करते हैं तकरार नहीं
धन प्रभाव के बल पर उनकी धूम मची
कितने जिनको साहित्यक आधार नहीं
रचना में ना दम आती विज्ञापन से
ऐसे जो हैं लिखने का अधिकार नहीं
उठे कलम जब दिल में मस्ती आ जाए
खुशबू रचना में होगी इनकार नहीं
खुशबू होगी तो मधुकर भी आयेंगे
सेवा है साहित्य सुमन व्यापार नहीं
प्रायोजित रचना से कोई प्यार नहीं
बच के रहना साहित्यिक दुकानों से
जी कर लिखता हूँ कोई बीमार नहीं
मठाधीश की आज यहाँ बन आई है
कितने डर से करते हैं तकरार नहीं
धन प्रभाव के बल पर उनकी धूम मची
कितने जिनको साहित्यक आधार नहीं
रचना में ना दम आती विज्ञापन से
ऐसे जो हैं लिखने का अधिकार नहीं
उठे कलम जब दिल में मस्ती आ जाए
खुशबू रचना में होगी इनकार नहीं
खुशबू होगी तो मधुकर भी आयेंगे
सेवा है साहित्य सुमन व्यापार नहीं
12 comments:
वाह...................
बहुत सुंदर..................
वाकई साहित्य सेवा है.......
जो व्यापार हुई तो उसमे से कोमलता,भाव, खुशबु,रंग सब गायब हो जाता है.....
सादर.
बस यही मान हम भी आगे बढ़े जा रहे हैं।
बहुत सही भावप्रधान रचना जो बहुत कुछ कह रही है .......आभार
बहुत सही भावप्रधान रचना जो बहुत कुछ कह रही है .......आभार
धन प्रभाव के बल पर उनकी धूम मची
कोई जिनको साहित्यक आधार नहीं,....
वाह,..क्या खूब लिखा आपने.....
साहित्य सेवा है व्यापार नही,.....
my recent post....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
आपकी बातो से श्यामल जी हमे भी इनकार नही
व्यापार वास्ते लिखे जो वो सच्चा फनकार नही
मठाधीश की आज यहाँ बन आई है
कितने डर से करते हैं तकरार नहीं
धन प्रभाव के बल पर उनकी धूम मची
कोई जिनको साहित्यक आधार नहीं
बिलकुल सही कहा है ॥सुंदर प्रस्तुति
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..
हर तरह की कला सेवा ही है ..
पर आज के व्यावसायिक युग ने लोगों की मानसिकता बदल दी है ..
जो दिखता है वहीं बिकता है !!
उज्जवल विचार ...
लिखते रहें
शुभकामनायें .
बच के रहना साहित्यिक दुकानों से
जी कर लिखता हूँ कोई बीमार नहीं
जी कर लिखते रहें पढ़ने से इनकार नहीं
भाव भरी गजल पढ़ी क्यों बंधन लेक्ख पर
काका हाथरसी की पंक्तियाँ याद आ गई
कभी घूस खाई नहीं, किया न भ्रष्टाचार
ऐसे भोंदू जीव को बार-बार धिक्कार
बार-बार धिक्कार, व्यर्थ है वह व्यापारी
माल तोलते समय न जिसने डंडी मारी
कहँ 'काका', क्या नाम पायेगा ऐसा बंदा
जिसने किसी संस्था का, न पचाया चंदा
aapke har tark se sahmat hoon..behtarin kriti sadar badhayee
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