Wednesday, May 9, 2012

सेवा है साहित्य सुमन व्यापार नहीं

लेखन में प्रतिबंध मुझे स्वीकार नहीं
प्रायोजित रचना से कोई प्यार नहीं

बच के रहना साहित्यिक दुकानों से
जी कर लिखता हूँ कोई बीमार नहीं

मठाधीश की आज यहाँ बन आई है
कितने डर से करते हैं तकरार नहीं

धन प्रभाव के बल पर उनकी धूम मची
कितने जिनको साहित्यक आधार नहीं

रचना में ना दम आती विज्ञापन से
ऐसे जो हैं लिखने का अधिकार नहीं

उठे कलम जब दिल में मस्ती आ जाए
खुशबू रचना में होगी इनकार नहीं

खुशबू होगी तो मधुकर भी आयेंगे
सेवा है साहित्य सुमन व्यापार नहीं

12 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह...................

बहुत सुंदर..................
वाकई साहित्य सेवा है.......

जो व्यापार हुई तो उसमे से कोमलता,भाव, खुशबु,रंग सब गायब हो जाता है.....
सादर.

प्रवीण पाण्डेय said...

बस यही मान हम भी आगे बढ़े जा रहे हैं।

समयचक्र said...

बहुत सही भावप्रधान रचना जो बहुत कुछ कह रही है .......आभार

समयचक्र said...

बहुत सही भावप्रधान रचना जो बहुत कुछ कह रही है .......आभार

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

धन प्रभाव के बल पर उनकी धूम मची
कोई जिनको साहित्यक आधार नहीं,....

वाह,..क्या खूब लिखा आपने.....
साहित्य सेवा है व्यापार नही,.....

my recent post....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

PAWAN VIJAY said...

आपकी बातो से श्यामल जी हमे भी इनकार नही
व्यापार वास्ते लिखे जो वो सच्चा फनकार नही

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मठाधीश की आज यहाँ बन आई है
कितने डर से करते हैं तकरार नहीं

धन प्रभाव के बल पर उनकी धूम मची
कोई जिनको साहित्यक आधार नहीं

बिलकुल सही कहा है ॥सुंदर प्रस्तुति

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति ..

हर तरह की कला सेवा ही है ..
पर आज के व्‍यावसायिक युग ने लोगों की मानसिकता बदल दी है ..
जो दिखता है वहीं बिकता है !!

Anupama Tripathi said...

उज्जवल विचार ...
लिखते रहें
शुभकामनायें .

गुड्डोदादी said...

बच के रहना साहित्यिक दुकानों से
जी कर लिखता हूँ कोई बीमार नहीं

जी कर लिखते रहें पढ़ने से इनकार नहीं

गुड्डोदादी said...

भाव भरी गजल पढ़ी क्यों बंधन लेक्ख पर
काका हाथरसी की पंक्तियाँ याद आ गई

कभी घूस खाई नहीं, किया न भ्रष्टाचार
ऐसे भोंदू जीव को बार-बार धिक्कार
बार-बार धिक्कार, व्यर्थ है वह व्यापारी
माल तोलते समय न जिसने डंडी मारी
कहँ 'काका', क्या नाम पायेगा ऐसा बंदा
जिसने किसी संस्था का, न पचाया चंदा

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

aapke har tark se sahmat hoon..behtarin kriti sadar badhayee

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