Tuesday, May 29, 2012

अन्तर्सम्बन्ध

मेरा भी मन मचलता है
एक प्रश्न के साथ, हमेशा
गिरता और सम्भलता है
क्यूँ नहीं लिख पाता एक कविता
मुक्त छंद की?

मुक्त छंद की कविता या
छंद मुक्त कविता?
आप जो भी कह लें, जो भी नाम दें
लेकिन यह सवाल
मेरे मन में हरदम लाता है भूचाल
कि क्या कविता भी कभी
छंद मुक्त हो सकती है?

शायद नहीं, कभी नहीं
क्योंकि कविता और छंद
इन दोनों का आपसी सम्बन्ध
होता है दूध पानी की तरह
बहती नदियों की रवानी की तरह
जो साथ होने पर भी
साथ दिखते नहीं
यही तो है इनका अन्तर्सम्बन्ध
जो कविता को कविता
बनाये रखती है
छंद वो खुशबू है जो
सुमन-काव्य
को जिलाये रखती है

6 comments:

विभूति" said...

मेरा भी मन मचलता है
एक प्रश्न के साथ, हमेशा
गिरता और सम्भलता है
क्यूँ नहीं लिख पाता एक कविता
मुक्त छंद की?मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

aapkee rachna me khusboo hai..aaur khushboo hakeekat me hee hoti hai..behtari,,sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath

प्रवीण पाण्डेय said...

सहमत हूँ..

गुड्डोदादी said...

अन्तर्सम्बन्ध
कविता को कविता
छंद को छंद
लिखने के लेखनी
कभी ना मंद

Asha Joglekar said...

कविता और छंद का वैसे तो चोली दामन का साथ है पर आपने तो लिख ही दी छंदमुक्त कविता या मुक्तछंद ।

Vandana Ramasingh said...

छंद वो खुशबू है जो
सुमन-काव्य को जिलाये रखती है


यह तो सच है

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