मेरा भी मन मचलता है
एक प्रश्न के साथ, हमेशा
गिरता और सम्भलता है
क्यूँ नहीं लिख पाता एक कविता
मुक्त छंद की?
मुक्त छंद की कविता या
छंद मुक्त कविता?
आप जो भी कह लें, जो भी नाम दें
लेकिन यह सवाल
मेरे मन में हरदम लाता है भूचाल
कि क्या कविता भी कभी
छंद मुक्त हो सकती है?
शायद नहीं, कभी नहीं
क्योंकि कविता और छंद
इन दोनों का आपसी सम्बन्ध
होता है दूध पानी की तरह
बहती नदियों की रवानी की तरह
जो साथ होने पर भी
साथ दिखते नहीं
यही तो है इनका अन्तर्सम्बन्ध
जो कविता को कविता
बनाये रखती है
छंद वो खुशबू है जो
सुमन-काव्य को जिलाये रखती है
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6 comments:
मेरा भी मन मचलता है
एक प्रश्न के साथ, हमेशा
गिरता और सम्भलता है
क्यूँ नहीं लिख पाता एक कविता
मुक्त छंद की?मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......
aapkee rachna me khusboo hai..aaur khushboo hakeekat me hee hoti hai..behtari,,sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath
सहमत हूँ..
अन्तर्सम्बन्ध
कविता को कविता
छंद को छंद
लिखने के लेखनी
कभी ना मंद
कविता और छंद का वैसे तो चोली दामन का साथ है पर आपने तो लिख ही दी छंदमुक्त कविता या मुक्तछंद ।
छंद वो खुशबू है जो
सुमन-काव्य को जिलाये रखती है
यह तो सच है
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