प्रायः हम सबने पढ़ा है,
सुना है श्रीमान
कि दीवारों के भी,
होते हैं कान
कभी कभी ऐसा क्यों
महसूसता हूँ कि
दीवारों की आँखें भी होतीं हैं
और शायद इसलिए
दो भाईयों के बीच में,
खड़ी होने की वजह से
अक्सर दीवारें रोतीं हैं
सुना है श्रीमान
कि दीवारों के भी,
होते हैं कान
कभी कभी ऐसा क्यों
महसूसता हूँ कि
दीवारों की आँखें भी होतीं हैं
और शायद इसलिए
दो भाईयों के बीच में,
खड़ी होने की वजह से
अक्सर दीवारें रोतीं हैं
7 comments:
umda prastui ...abhar
दीवारों का दर्द कहाँ दिखायी पड़ता है।
deewaar...dee war ..aankhein to nam hona hee hai..suman jee kahan kahan tak sochte hain aap wakai..yadi apni vyavastta se kuch chan chura sakein to mere blog per bhee aayiyega..badhayee ke sath
दीवारें खुद को कोसती हैं,दीवारें रोती हैं ,
एक उम्दा भाव पूर्ण प्रस्तुति
"दीवारें रोती हैं सही
मगर वह इतना है विवश
चाहकर न रोक सके
है यह उसकी तड़प "
अन्तरव्यथा..........
वाह सुमन जी बहुत सुंदर दर्द आख़िर दर्द है
यह संवेदनशीलता जरूरी है कि दीवारों के आंसू महसूस किये जा सकें ...बहुत बढ़िया
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