कौन किसको पूछता है कौन समझाता यहाँ
आईने का दोष देकर सच को भरमाता यहाँ
सात पीढ़ी से भी आगे धुन अरजने की लगी
मस्त अपने गीत में सब कौन सुन पाता यहाँ
सच कभी शायद वो सपने बन्द आँखों में दिखे
पर खुली आँखों का सपना सबको फुसलाता यहाँ
बह रहा जिसका पसीना खेत और खलिहान में
वक्त से पहले भला क्यूँ आज मर जाता यहाँ
चाँदनी भी कैद होकर रह गयी है आजकल
क्यूँ सुमन इस हाल में अब रोज पछताता यहाँ
आईने का दोष देकर सच को भरमाता यहाँ
सात पीढ़ी से भी आगे धुन अरजने की लगी
मस्त अपने गीत में सब कौन सुन पाता यहाँ
सच कभी शायद वो सपने बन्द आँखों में दिखे
पर खुली आँखों का सपना सबको फुसलाता यहाँ
बह रहा जिसका पसीना खेत और खलिहान में
वक्त से पहले भला क्यूँ आज मर जाता यहाँ
चाँदनी भी कैद होकर रह गयी है आजकल
क्यूँ सुमन इस हाल में अब रोज पछताता यहाँ
8 comments:
सशक्त भाव हैं ...गहन अभिव्यक्ति है ....
आज का सामाजिक जीवन दर्शाती हुई ...
शुभकामनाएं
कौन किसको पूछता है कौन समझाता यहाँ
आईने का दोष देकर सच को भरमाता यहाँ
विहल वेदना
कौन किसी के आगे पीछे
हर कोई अपना सुख सोचे
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (01-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत ही प्रभावी रचना..
बह रहा जिसका पसीना खेत और खलिहान में
वक्त से पहले भला क्यूँ आज मर जाता यहाँ
सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी.....
yathaarth aur saamyik
yathaarth aur saamyik
कौन किसको पूछता है कौन समझाता यहाँ
आईने का दोष देकर सच को भरमाता यहाँ
.....namaskaar suman ji bahut sundar rachna hai gahare bhav liye huye .badhai aapko
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