Friday, September 28, 2012

यह मुर्दों की बस्ती है

व्यर्थ यहाँ क्यों बिगुल बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है
कौवे आते, राग सुनाते. यह मुर्दों की बस्ती है

यूँ भी शेर बचे हैं कितने, बचे हुए बीमार अभी
राजा गीदड़ देश चलाते, यह मुर्दों की बस्ती है

गिद्धों की अब निकल पड़ी है, वे दरबार सजाते हैं
बिना रोक वे धूम मचाते, यह मुर्दों की बस्ती है

साँप, नेवले की गलबाँही, देख सभी हैं अचरज में
अब भैंसे भी बीन बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है

दाने लूट लिए चूहे सब समाचार पढ़कर रोते
बेजुबान पर दोष लगाते, यह मुर्दों की बस्ती है

सभी चीटियाँ बिखर गयीं हैं, अलग अलग अब टोली में
बाकी सब जिसको भरमाते, यह मुर्दों की बस्ती है

हैं सफेद अब सारे हाथी, बगुले काले सभी हुए
बचे हुए को सुमन जगाते, यह मुर्दों की बस्ती है

16 comments:

रविकर said...

खुबसूरत गजल पर

यह पंक्तियाँ सादर समर्पित ।।



मुद्दों ने ऐसा भटकाया, हुआ शहर वीरान ।

मुर्दे कब्ज़ा करें घरों पर, भरे घड़े श्मशान ।

एक व्यवस्था चले सही से, लाशों पर है टैक्स -

अपना बोरिया बिस्तर लेकर, भाग गए भगवान् ।।

पूरण खण्डेलवाल said...

अच्छी है !!

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 30/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

गुड्डोदादी said...

.






यहाँ रोटी हैं महंगी जिन्दगी है सस्ती
मेरे महान देश में बसी है मुर्दों की बस्ती
अश्रू पूर्ण विहल


Rakesh Mohan Hallen Yahan ik kilona hai insaan ki hast, ye basti hai murda paraston ku basti,, http://www.thesecretlarevista.com/en/88/2486/This_world_of_palaces.html

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज के हालातों को कहती अच्छी गज़ल

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!

nayee dunia said...

बहुत सही कहा आपने .....

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर !!

बस्ती में होते है
तो ये सब मुर्दे
हो काते हैं
अकेले अकेले
में सब मुर्दे
अपनी अपनी
कबरों में
सोना तो छिपाते हैं !!

Saras said...

बहुत सही कहा ....

काव्य संसार said...

बौट बढ़िया रचना |
इस समूहिक ब्लॉग में पधारें और इस से जुड़ें |
काव्य का संसार

प्रवीण पाण्डेय said...

चहुँ ओर हताशा फैली है, बन बीज जगत के खेतों में..

Onkar said...

सुन्दर कविता

शारदा अरोरा said...

majedar kataksh..

Nidhi said...

सम सामयिक गज़ल..

रविकर said...

गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन-
आदरणीय मित्रवर-
धनबाद के ISM में
दिनांक 4 नवम्बर 2012 को संध्या 3 pm
पर एसोसियेशन के गठन के लिए बैठक रख सकते हैं क्या ??
अपनी सहमति देने की कृपा करे ||
सायंकाल 6 से 9 तक एक गोष्ठी का भी आयोजन किया जा सकता है ||
भोजन के पश्चात् रात्रि विश्राम की भी व्यवस्था रहेगी-

Asha Joglekar said...

यूँ भी शेर बचे हैं कितने, बचे हुए बीमार अभी
राजा गीदड़ देश चलाते, यह मुर्दों की बस्ती है

गिद्धों की अब निकल पड़ी है, वे दरबार सजाते हैं
बिना रोक वे धूम मचाते, यह मुर्दों की बस्ती है

बहुत सटीक और सामयिक भी ।

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