किसी का ख्वाब मत तोड़ो, मेरी इतनी गुजारिश है
दिलों को दिल से जोड़ें हम, यही दिल की सिफारिश है
जहाँ पे ख्वाब टूटेंगे, क़यामत भी वहीं लाजिम
इधर दिल सूख जाते हैं, उधर नैनों से बारिश है
हकीकत से कोई उलझा, कोई उलझा बहाने में
बहुत कम जूझते सच से, लगे हैं आजमाने में
कहीं पर गाँव बिखरे हैं, कहीं परिवार टूटा है
दिलों को जोड़ने वाले, नहीं मिलते जमाने में
निराशा ही मिली अबतक, मगर कुछ आस बाकी है
जमीनें छिन रहीं हैं पर, अभी आकाश बाकी है
भले हँसकर या रो कर अब, हमे तो जागना होगा
उठेंगे हाथ मिलकर के, यही विश्वास बाकी है
पलट कर देख लें खुद को, नहीं फुरसत अभी मिलती
मुहब्बत बाँटने पर क्यों, यहाँ नफरत अभी मिलती
मसीहा ने ही मिलकर के, यहाँ विश्वास तोड़ा है
सुमन हों एक उपवन के, कहाँ फितरत अभी मिलती
दिलों को दिल से जोड़ें हम, यही दिल की सिफारिश है
जहाँ पे ख्वाब टूटेंगे, क़यामत भी वहीं लाजिम
इधर दिल सूख जाते हैं, उधर नैनों से बारिश है
हकीकत से कोई उलझा, कोई उलझा बहाने में
बहुत कम जूझते सच से, लगे हैं आजमाने में
कहीं पर गाँव बिखरे हैं, कहीं परिवार टूटा है
दिलों को जोड़ने वाले, नहीं मिलते जमाने में
निराशा ही मिली अबतक, मगर कुछ आस बाकी है
जमीनें छिन रहीं हैं पर, अभी आकाश बाकी है
भले हँसकर या रो कर अब, हमे तो जागना होगा
उठेंगे हाथ मिलकर के, यही विश्वास बाकी है
पलट कर देख लें खुद को, नहीं फुरसत अभी मिलती
मुहब्बत बाँटने पर क्यों, यहाँ नफरत अभी मिलती
मसीहा ने ही मिलकर के, यहाँ विश्वास तोड़ा है
सुमन हों एक उपवन के, कहाँ फितरत अभी मिलती
14 comments:
उठेंगे हाथ मिलकर के, यही विश्वास बाकी है
यही विश्वास दिन ब दिन गाढ़ा होता जाता है।
सुन्दर प्रस्तुति ||
आखिरी की चार लाइने तो दिल छू गयी
सादर अभिवादन!
--
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (27-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
'निराशा ही मिली अबतक, मगर कुछ आस बाकी है
जमीनें छिन रहीं हैं पर, अभी आकाश बाकी है'
बहुत सुन्दर ,मन को छूनेवाला !
Beautiful
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यही विश्वास बाकी है
किसी का ख्वाब मत तोड़ो, मेरी इतनी गुजारिश है
दिलों को दिल से जोड़ें हम, यही दिल की सिफारिश है
जहाँ पे ख्वाब टूटेंगे, क़यामत भी वहीं लाजिम
इधर दिल सूख जाते हैं, उधर नैनों से बारिश है
हकीकत से कोई उलझा, कोई उलझा बहाने में
बहुत कम जूझते सच से, लगे हैं आजमाने में
कहीं पर गाँव बिखरे हैं, कहीं परिवार टूटा है
दिलों को जोड़ने वाले, नहीं मिलते जमाने में
निराशा ही मिली अबतक, मगर कुछ आस बाकी है
जमीनें छिन रहीं हैं पर, अभी आकाश बाकी है
भले हँसकर या रो कर अब, हमे तो जागना होगा
उठेंगे हाथ मिलकर के, यही विश्वास बाकी है
पलट कर देख लें खुद को, नहीं फुरसत अभी मिलती
मुहब्बत बाँटने पर क्यों, यहाँ नफरत अभी मिलती
मसीहा ने ही मिलकर के, यहाँ विश्वास तोड़ा है
सुमन हों एक उपवन के, वही फितरत अभी मिलती
Posted by श्यामल सुमन at 8:05 PM
Labels: मुक्तक
सुमन जी श्यामल मुक्तक नहीं यह तो पूरा प्रबंध काव्य है दास्ताने हिन्द है .
मसीहा ने ही मिलकर के, यहाँ विश्वास तोड़ा है
सुमन हों एक उपवन के, वही फितरत अभी मिलती
badhiya hai!
to read my Hindi poems, kindly visit:
http://mahanagarmemahakavi.wordpress.com/
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
किस किस पंक्ति की तारीफ करूँ , सभी लाजवाब हैं | और सबसे खास बात किसी दायरे में सिमटी हुई नहीं लगतीं |
बहुत अच्छा लगा पढकर
सादर
सुन्दर प्रस्तुति ||
कभी हमारे घर भी पधारीयेगा
हमारा पता है
http://rworld23.blogspot.com
अति सुंदर ...
विश्वास बाकी रहनी ही चाहिए ..
सुंदर और प्रेरक गीत
कहीं पर गाँव बिखरे हैं, कहीं परिवार टूटा है
दिलों को जोड़ने वाले, नहीं मिलते जमाने में.....सच्ची तस्वीर ...
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