Tuesday, December 11, 2012

बाहर तकरार देखिये

कैसा अजीब रिश्ता, व्यवहार देखिये
लड़ते हैं, झगड़ते हैं मगर प्यार देखिये

रहते नहीं जुदा ये कभी बात मजे की
दिल में है प्यार, बाहर तकरार देखिये

बाहर में कहे शौहर इक शेर है वही
जाते ही घर में बनते सियार देखिये

समझौता हुआ ऐसा बेगम से काम का
बर्तन भी साफ करने को लाचार देखिये

तफरीह नहीं होतीं भारत में शादियाँ
इक दूजे पे है प्यार का अधिकार देखिये

बनते हैं पुल बच्चे मिल जाते किनारे
जीने के सिलसिले का संसार देखिये

मिलती है नयी ताजगी काँटों की सेज पर
हर हाल में सुमन है स्वीकार देखिये


14 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत उम्दा गज़ल

Madan Mohan Saxena said...

बहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार. बधाई आपको

Madan Mohan Saxena said...

बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई.

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

बेहतर लेखन !!

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

बेहतर लेखन !!

प्रवीण पाण्डेय said...

ज़िन्दगी अजीब है,
गुज़र जाये तो अच्छा है।

http://anusamvedna.blogspot.com said...

बेहद सुंदर और उम्दा गजल

विभूति" said...

खुबसूरत अभिवयक्ति......

हिंदी चिट्ठा संकलक said...

सादर निमंत्रण,
अपना बेहतरीन ब्लॉग हिंदी चिट्ठा संकलक में शामिल करें

गुड्डोदादी said...

कैसा अजीब रिश्ता, व्यवहार देखिये
लड़ते हैं, झगड़ते हैं मगर प्यार देखिये
सुरूचिपूर्ण गजल
(तकरार,लाचार अधिकार के साथ संसार )

yashoda Agrawal said...

बढ़िया ग़ज़ल

Unknown said...


बहुत सुंदर ...बधाई .आप भी पधारो
http://pankajkrsah.blogspot.com
स्वागत है

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन गजल


सादर

Vinay said...

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

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