Monday, June 24, 2013

यूँ रोया पर्वत सुमन

चमत्कार विज्ञान का, सुविधा मिली जरूर।
भौतिक दूरी कम हुई, अपनेपन से दूर।।

होती थी कुछ देर पर, चिट्ठी से सम्वाद।
मोबाइल में है कहाँ, उतना मीठा स्वाद।।

साक्षर थी भाभी नहीं, भैया थे परदेश।
बातें दिल की सुमन से, लिखवाती संदेश।।

विश्व-ग्राम ने अब सुमन, लाया है दुर्योग।
गाँवों में मिलते नहीं, सीधे साधे लोग।।

यूँ रोया पर्वत सुमन, शायद पहली बार।
रोते हैं सब देखकर, मानव का संहार।।

प्राकृतिक सौन्दर्य का, इक अपना है गीत।
कोशिश है विज्ञान की, दर्ज करें हम जीत।।

नियति-नियम के संग में, चले सदा विज्ञान।
फिर क्यों देखेंगे सुमन, यह भीषण नुकसान।।

12 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सुविधा समाधान नहीं, सुविधा विधान नहीं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सार्थक सीख देते दोहे .... बहुत सुंदर

shashi purwar said...

बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (26-06-2013) के धरा की तड़प ..... कितना सहूँ मै .....! खुदा जाने ....!१२८८ ....! चर्चा मंच अंक-1288 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार

प्रतिभा सक्सेना said...

ठीक कह रहे हैं आप ,विज्ञान और प्रकृति में ताल-मेल नहीं बैठाया जायेगा तो विषमताओं का यही धमाल होगा !

दिगम्बर नासवा said...

प्राकृति और विज्ञानं पूरक होने चाहियें न की विपरीत ... सार्थक सन्देश छुपा है आपकी रचना में ...

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

pyare se dil se nikalte dohe ...:)

कविता रावत said...

रोया है पर्वत सुमन, शायद पहली बार।
रोते हैं सब देखकर, मानव का संहार।।
...मार्मिक प्रस्तुति ...

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!

गुड्डोदादी said...


होती थी कुछ देर पर, चिट्ठी से सम्वाद।
मोबाइल में है कहाँ, उतना मीठा स्वाद।।
(सच सटीक सार्थक सीख ,बस यही समाचार संवाद का सविधान |सुन कर हो जाते परेशान

Vandana Ramasingh said...

बेहतरीन प्रस्तुति

Pallavi saxena said...

साटिक बात कहती सार्थक रचना विज्ञान के नाम पर हम तरक्की तो कर रहे हैं लेकिन उस तरक्की के साथ-साथ अपनी अमूल्य धरोहर अपना पर्यावरण और प्रकृति के साथ संतुलन नहीं बना पा रहे हैं और जब तक यह ताल मेल नहीं बनेगा तब तक ऐसी प्रकृतिक आपदाओं को झेलेने के लिए तैयार रहना चाहिए हमें।

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