चमत्कार विज्ञान का, सुविधा मिली जरूर।
भौतिक दूरी कम हुई, अपनेपन से दूर।।
होती थी कुछ देर पर, चिट्ठी से सम्वाद।
मोबाइल में है कहाँ, उतना मीठा स्वाद।।
साक्षर थी भाभी नहीं, भैया थे परदेश।
बातें दिल की सुमन से, लिखवाती संदेश।।
विश्व-ग्राम ने अब सुमन, लाया है दुर्योग।
गाँवों में मिलते नहीं, सीधे साधे लोग।।
यूँ रोया पर्वत सुमन, शायद पहली बार।
रोते हैं सब देखकर, मानव का संहार।।
प्राकृतिक सौन्दर्य का, इक अपना है गीत।
कोशिश है विज्ञान की, दर्ज करें हम जीत।।
नियति-नियम के संग में, चले सदा विज्ञान।
फिर क्यों देखेंगे सुमन, यह भीषण नुकसान।।
भौतिक दूरी कम हुई, अपनेपन से दूर।।
होती थी कुछ देर पर, चिट्ठी से सम्वाद।
मोबाइल में है कहाँ, उतना मीठा स्वाद।।
साक्षर थी भाभी नहीं, भैया थे परदेश।
बातें दिल की सुमन से, लिखवाती संदेश।।
विश्व-ग्राम ने अब सुमन, लाया है दुर्योग।
गाँवों में मिलते नहीं, सीधे साधे लोग।।
यूँ रोया पर्वत सुमन, शायद पहली बार।
रोते हैं सब देखकर, मानव का संहार।।
प्राकृतिक सौन्दर्य का, इक अपना है गीत।
कोशिश है विज्ञान की, दर्ज करें हम जीत।।
नियति-नियम के संग में, चले सदा विज्ञान।
फिर क्यों देखेंगे सुमन, यह भीषण नुकसान।।
12 comments:
सुविधा समाधान नहीं, सुविधा विधान नहीं।
सार्थक सीख देते दोहे .... बहुत सुंदर
बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (26-06-2013) के धरा की तड़प ..... कितना सहूँ मै .....! खुदा जाने ....!१२८८ ....! चर्चा मंच अंक-1288 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
ठीक कह रहे हैं आप ,विज्ञान और प्रकृति में ताल-मेल नहीं बैठाया जायेगा तो विषमताओं का यही धमाल होगा !
प्राकृति और विज्ञानं पूरक होने चाहियें न की विपरीत ... सार्थक सन्देश छुपा है आपकी रचना में ...
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
pyare se dil se nikalte dohe ...:)
रोया है पर्वत सुमन, शायद पहली बार।
रोते हैं सब देखकर, मानव का संहार।।
...मार्मिक प्रस्तुति ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
होती थी कुछ देर पर, चिट्ठी से सम्वाद।
मोबाइल में है कहाँ, उतना मीठा स्वाद।।
(सच सटीक सार्थक सीख ,बस यही समाचार संवाद का सविधान |सुन कर हो जाते परेशान
बेहतरीन प्रस्तुति
साटिक बात कहती सार्थक रचना विज्ञान के नाम पर हम तरक्की तो कर रहे हैं लेकिन उस तरक्की के साथ-साथ अपनी अमूल्य धरोहर अपना पर्यावरण और प्रकृति के साथ संतुलन नहीं बना पा रहे हैं और जब तक यह ताल मेल नहीं बनेगा तब तक ऐसी प्रकृतिक आपदाओं को झेलेने के लिए तैयार रहना चाहिए हमें।
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