Friday, September 6, 2013

घर तक पहुँची आग

डालर बढ़ता जा रहा, रुपया गिरा धड़ाम।
वैसे ही निर्मल गिरे, गिरे हैं आसाराम।।

बीता सड़सठ साल भी, आजादी के नाम।
सड़सठ रपये से अधिक, अब डालर के दाम।।

दत्तक बेटा रो रहा, किसको कहें कलेश।
हाल बुरा है देश का, माता गईं विदेश।।

व्यवसायी वो धर्म के, नामी ठेकेदार।
परदा हटते ही सुमन, घर घर में धिक्कार।।

राजनीति औ धर्म का, भारत में है मेल।
शासन-शोषण का सुमन, देख रहे सब खेल।

नेता, पंडित, मौलवी, भाषण देते खास।
छले गए सारे सुमन, टूटा है विश्वास।।

देश, धर्म सबके लिए, सबको है अनुराग।
जागोगे कबतक सुमन, घर तक पहुँची आग।।

6 comments:

Shah Nawaz said...

परिस्थितियाँ वाकई विकट हैं... अच्छी रचना...

अरुन अनन्त said...

नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (08-09-2013) के चर्चा मंच -1362 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

Anonymous said...

sunder rachna

पता लगाये किसने आपकी पोस्ट को चोरी किया है

प्रवीण पाण्डेय said...

जय जय मेरे देश,
बदल रहा परिवेश।

poonam said...

सच बात ...हो रहा बुरा हाल

विभूति" said...

sachi baat....

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