कहाँ शिकायत मेरे दिल में
आस लिए बैठा महफिल में
कोशिश में कुछ भले कमी हो
खोट नहीं होती मंजिल में
जी लेगा मिहनत के दम पर
व्यर्थ ढूँढना है काहिल में
जीवन की गहराई कबतक
खोजोगे तुम बस साहिल में
दिल्ली से है मिली निराशा
दया नहीं होती बेदिल में
नीति-नियम है संविधान भी
नहीं ज्ञान देखा जाहिल में
सुमन रहम दिखलाई देती
शासक से ज्यादा कातिल में
आस लिए बैठा महफिल में
कोशिश में कुछ भले कमी हो
खोट नहीं होती मंजिल में
जी लेगा मिहनत के दम पर
व्यर्थ ढूँढना है काहिल में
जीवन की गहराई कबतक
खोजोगे तुम बस साहिल में
दिल्ली से है मिली निराशा
दया नहीं होती बेदिल में
नीति-नियम है संविधान भी
नहीं ज्ञान देखा जाहिल में
सुमन रहम दिखलाई देती
शासक से ज्यादा कातिल में
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-10-2013) "जन्म-ज़िन्दग़ी भर रहे, सबका अटल सुहाग" (चर्चा मंचःअंक-1407) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्रभावशाली रचना |
सही है, सच यही है।
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