Wednesday, October 23, 2013

अधिक ज्ञान का रोग

जो दिखता होता नहीं, सोच समझ कर गौर।
खुश होना इक बात है, दिखना है कुछ और।।

पीतल को सोना बना, किया दशक से पेश।
कठपुतली का दोष क्या, भुगत रहा है देश।।

एक हकीकत है अभी, सोचें आप जरूर।
मजदूरों के संघ से, डरते हैं मजदूर।।

शासन, पानी का सदा, होता एक प्रवाह।
जहाँ ठहर जाता वहीं, भ्रष्टाचार अथाह।।

सीख रहे हैं हम सुमन, अक्सर कहते लोग।
पर देखो व्यवहार में, अधिक ज्ञान का रोग।।

10 comments:

Rajendra kumar said...

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (25-10-2013) को " ऐसे ही रहना तुम (चर्चा -1409)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

Amrita Tanmay said...

अति सुन्दर..

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत अच्छे दोहे
नई पोस्ट मैं

प्रवीण पाण्डेय said...

ज्ञानपरक, सामयिक और प्रेरणा देते दोहे..

रश्मि शर्मा said...

बहुत अच्‍छे दोहे..

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

Asha Joglekar said...

सामयिक, सटीक दोहे।

anandbala sharma said...


जीवन क्या है,एक वहम है
पीतल पर पानी सोने का.

बात सच है---आनंद बाला

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बेहद प्रभावी ......

श्यामल सुमन said...

सर्व श्री / श्रीमती / सुश्री राजेन्द्र कुमार जी रूपचंद, अमृता तन्मय जी, कालीपद प्रसाद जी, प्रवीण पाण्डेय जी, आशा जोगलेकर जी रश्मि शर्मा जी, प्रतिभा वर्मा जी, निवेदिता श्रीवास्तव जी - आप सबकी सराहना और समर्थन प्रेरक है मेरे लिए। राजेन्द्र कुमार जी ने इस पोस्ट को चर्चामंच से जोड़कर इसे और विस्तार दिया है। आप सबके प्रति विनम्र आभार

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