होते सारे काल हमीं से
जीवन के जंजाल हमीं से
यूँ तो हम धरती पर जीते
आते हैं भूचाल हमीं से
राह दिखान वो आये पर
पूछे वही सवाल हमीं से
सभी परिन्दों को उड़ने दे
क्यों बुनवाते जाल हमीं से
तख्त बिठाया इक निर्धन को
अब वो मालामाल हमीं से
अक्सर वार करे हो हम पर
बनवाते हो ढाल हमीं से
परिवर्तन की कोशिश जारी
होगा सुमन कमाल हमीं से
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (29-10-2013) "(इन मुखोटों की सच्चाई तुम क्या जानो ..." (मंगलवारीय चर्चा--1413) में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
निश्चय ही कमाल होगा।
सर्व श्री धीरेन्द्र सिंह भदौरिया जी रूपचंद शास्त्री जी, प्रवीण पाण्डेय जी - आप सबकी सराहना और समर्थन प्रेरक है मेरे लिए। रूपचंद शास्त्री जी ने इस पोस्ट को चर्चामंच से जोड़कर इसे और विस्तार दिया है। आप सबके प्रति विनम्र आभार
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