Monday, October 28, 2013

आते हैं भूचाल हमीं से

होते   सारे   काल   हमीं  से
जीवन  के  जंजाल  हमीं से

यूँ  तो  हम  धरती  पर जीते
आते   हैं   भूचाल   हमीं  से

राह   दिखान   वो  आये पर
पूछे   वही   सवाल  हमीं  से

सभी  परिन्दों   को  उड़ने  दे
क्यों  बुनवाते  जाल  हमीं से

तख्त बिठाया इक निर्धन को
अब  वो  मालामाल  हमीं  से

अक्सर  वार  करे हो हम पर
बनवाते   हो   ढाल   हमीं  से

परिवर्तन  की  कोशिश जारी
होगा  सुमन  कमाल  हमीं से

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (29-10-2013) "(इन मुखोटों की सच्चाई तुम क्या जानो ..." (मंगलवारीय चर्चा--1413) में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

प्रवीण पाण्डेय said...

निश्चय ही कमाल होगा।

श्यामल सुमन said...

सर्व श्री धीरेन्द्र सिंह भदौरिया जी रूपचंद शास्त्री जी, प्रवीण पाण्डेय जी - आप सबकी सराहना और समर्थन प्रेरक है मेरे लिए। रूपचंद शास्त्री जी ने इस पोस्ट को चर्चामंच से जोड़कर इसे और विस्तार दिया है। आप सबके प्रति विनम्र आभार

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