Thursday, November 7, 2013

चिन्गारी भर दे मन में

ऐसा  गीत   सुनाओ  कविवर,  खुद्दारी  भर  दे मन में।
परिवर्तन  लाने  की  खातिर,  चिन्गारी  भर  दे मन में।।

देख  रहे  हैं   हम  सब  यारों,  कैसे   हैं  हालात  अभी?
मिलते रहते कदम कदम पे, जनता  को आघात अभी।
अपने  हक  की रखवाली को, आमलोग  ने चुना जिसे,
ताज दिया पर वो क्या करते, हम सब की वे बात अभी?
सत्य लिखो पर वो ना लिखना, मक्कारी भर  दे मन में।
परिवर्तन लाने की खातिर -----

लिखो  हास्य पर  व्यंग्य साथ में, लोगों से सम्वाद करो।
भूत - प्रेत, जादू - टोना से, जन जन  को  आजाद करो।
लड़ना  भूख - गरीबी  से  तो,  ऐसे  शब्द  सजाओ तुम,
उठकर जाति - धरम से ऊपर,  नूतन  नहीं विवाद करो।
लिखना  नहीं  कभी  कुछ  ऐसा, लाचारी भर दे मन में।
परिवर्तन लाने की खातिर -----


आग  बिना  उगले  लेखन में, आपस  का सद्भाव रहे।
इक दूजे का मिल सहलाएं, अगर किसी को घाव रहे।
शब्दों  की  दीवार  बना  दो, रोके  नफरत  की  आँधी,
सबको  मौका  सुमन बराबर, जिसकी जैसी चाव रहे।
मत  छेड़ो  वो  तान  कभी  तुम, बीमारी भर दे मन में।
परिवर्तन लाने की खातिर -----

17 comments:

kuldeep thakur said...

आप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 11/11/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
सूचनार्थ।



Rajeev Kumar Jha said...

बहुत सुंदर.

Rajkumar said...


आदरणीय श्यामल सुमन जी,
आपकी यह सुंदर रचना बेंगलूर से प्रकाशित हिंदी दैनिक समाचार पत्र "दक्षिण भारत' की दिनांक 9 नवंबर की प्रति के संपादकीय पृष्ठ पर देने की अनुमति चाहता हूं। इस पृष्ठ पर नियमित रूप से कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं। कृपया अपनी कविता शनिवार के अंक में इस लिंक http://www.dakshinbharat.com/e-paper/ पर देखें।
अग्रिम अनुमति की अपेक्षा के साथ...
राजकुमार भट्टाचार्य

Rajkumar said...


आदरणीय श्यामल सुमन जी,
आपकी यह सुंदर रचना बेंगलूर से प्रकाशित हिंदी दैनिक समाचार पत्र "दक्षिण भारत' की दिनांक 9 नवंबर की प्रति के संपादकीय पृष्ठ पर देने की अनुमति चाहता हूं। इस पृष्ठ पर नियमित रूप से कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं। कृपया अपनी कविता शनिवार के अंक में इस लिंक http://www.dakshinbharat.com/e-paper/ पर देखें।
अग्रिम अनुमति की अपेक्षा के साथ...
राजकुमार भट्टाचार्य

शारदा अरोरा said...

sundar lagi rachna...

anand bala sharma said...


सुंदर एवम् सार्थक कविता

आनंद बाला शर्मा

anand bala sharma said...


सुंदर एवम् सार्थक कविता

आनंद बाला शर्मा

anand bala sharma said...



सुंदर एवम् सार्थक कविता

आनंद बाला शर्मा

anand bala sharma said...


सुंदर एवम् सार्थक कविता

आनंद बाला शर्मा

Anand bala sharma said...


सार्थक एवम् सुंदर कविता

आनंद बाला शर्मा

Anand bala sharma said...


सार्थक एवम् सुंदर कविता

आनंद बाला शर्मा

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर अभिव्यक्ति !

Bhavana Lalwani said...

simple yet effective... achhi lagi kavita.

कालीपद "प्रसाद" said...

लिखो हास्य पर व्यंग्य साथ में, लोगों से सम्वाद करो।
भूत-प्रेत और जादू-टोना, से उनको आजाद करो।
भूख-गरीबी से लड़ना है, ऐसे शब्द सजाओ तुम,
जाति-धरम से ऊपर उठकर, कोई नहीं विवाद करो।
उत्तम !
नई पोस्ट काम अधुरा है

श्यामल सुमन said...

सर्वादरणीय कुलदीप ठाकुर जी, राजीव कुमार झा जी एवम अंताक्षरी - आप सबके प्रति विनम्र आभार जो आपलोगों ने अपने प्रयास से रचना के फलक को और विस्तार देने के लिए अपने अपने लिंक में प्रकाशित किया।

आदरणीया शारदा अरोरा जी आदरणीया आनन्द बाला जी आदरणीया भावना लालवाणी जी, आदरणीय कालीपद प्रसाद जी - आपलोगों ने रचना को सराहा जो मेरे लिए महत्वपूर्ण है - हार्दिक धन्यवाद

विनोद कुमार पांडेय said...

वाह बहुत सुन्दर सामाजिक रचना। .बधाई

गुड्डोदादी said...

बिना आग उगले लेखन में, आपस का सद्भाव रहे।
लोग जगें और मिल सहलायें, अगर किसी को घाव रहे
(यही मेरे भारत का सम्मान रहे प्रोत्साहन रहे

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!