आम आदमी के लिए, कौन आम या खास।
तोड़ा है सबने सुमन, आम लोग विश्वास।।
आम आदमी नाम से, बना सुमन दल एक।
धीरे धीरे खो रहा, अपना नित्य विवेक।।
दाँव-पेंच फिर से वही, वही पुराना राग।
आम आदमी पेट में, सुमन जली है आग।।
बड़बोले, स्वारथ भरे, जुटे अचानक लोग।
आम आदमी का सुमन, भला मिटे कब रोग।।
वादे थे अच्छे सुमन, लोग लिया आगोश।
दिल्ली की गद्दी मिली, "आप" हुए मदहोश।।
तोड़ा है सबने सुमन, आम लोग विश्वास।।
आम आदमी नाम से, बना सुमन दल एक।
धीरे धीरे खो रहा, अपना नित्य विवेक।।
दाँव-पेंच फिर से वही, वही पुराना राग।
आम आदमी पेट में, सुमन जली है आग।।
बड़बोले, स्वारथ भरे, जुटे अचानक लोग।
आम आदमी का सुमन, भला मिटे कब रोग।।
वादे थे अच्छे सुमन, लोग लिया आगोश।
दिल्ली की गद्दी मिली, "आप" हुए मदहोश।।
9 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन इंटरनेशनल अवॉर्ड जीतने वाली पहली बंगाली अभिनेत्री थीं सुचित्रा मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (19-01-2014) को "सत्य कहना-सत्य मानना" (चर्चा मंच-1496) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (19-01-2014) को "सत्य कहना-सत्य मानना" (चर्चा मंच-1496) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लासा मंजर में लगा, आह आम अरमान |
मौसम दे देता दगा, है बसन्त हैरान |
है बसन्त हैरान, कोयलें रोज लुटी हैं |
गिरगिटान मुस्कान, लोमड़ी बड़ी घुटी है |
गीदड़ की बारात, दिखाता सिंह तमाशा |
बन्दर की औकात, बताता नया खुलासा ||
आम सोगों के लिये आम बने रहना कठिन लगता है।
वा वाह , सामयिक एवं आवश्यक है यह रचना ! आभार आपका . . .
बहुत सुन्दर...
बहुत कठिन है डगर पनघट की,
कैसे भर लाऊँ जमुना से मटकी।
बहुत कठिन है डगर पनघट की,
कैसे भर लाऊँ जमुना से मटकी।
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