Friday, June 27, 2014

जीने का सहारा देखा

तेरी आँखों में समन्दर का नज़ारा देखा
झुकी पलकों में छुपा उसका किनारा देखा
जहाँ पे प्यार की लहरें मचाये शोर सुमन
उस किनारे पर मैंने जीने का सहारा देखा

दूरियाँ तुमसे नहीं रास कभी आएगी
मिलन की चाह की वो प्यास कभी आएगी
तुम्हारे प्यार के बन्धन में यूँ घिरा है सुमन
लौटकर मौत भी ना पास कभी आएगी

हँसी को ओढ़ के आँखों में भला क्यूँ गम है
लरजते देखा नहीं पर वहाँ पे शबनम है
तेरे कदमों के नीचे रोज बिछा दूँ मैं सुमन
गीत जो भी हैं मेरे पर तुम्हारा सरगम है

तुम्हारी आँखों में देखा तो मेरी सूरत है
ऐसा महसूस किया प्यार का महूरत है
बिखर ना जाए सुमन को जरा बचा लेना
तू मेरी जिन्दगी है और तू जरूरत है

4 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत खुबसूरत मुक्तक !
उम्मीदों की डोली !

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर ।

Unknown said...

बहुत सुन्दर दिल से लिखी रचना।

dr.mahendrag said...

बहुत उम्दा प्रस्तुति

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