Monday, June 30, 2014

हर हाथ तिरंगा हो

ना कोई नंगा हो, ना तो भिखमंगा हो।
चाहत कि रिश्ता आपसी घर घर में चंगा हो।।

धरती पर आई, लेकर खुशियाली।
सूखी मिट्टी में, भर दी हरियाली।
चाहत कि पहले की तरह निर्मल सी गंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------

ये जात-धरम की बात, सम्बन्धों पे आघात।
भाई से भाई क्यों, नित करता है प्रतिघात।
चाहत कि मानवता जगे, ना कोई दंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------

लो जाग रहे हैं लोग, जो मिटा दे सारे रोग।
अब छोड़ो भोग सुमन, और सीखो हर दिन योग।
चाहत कि वन्देमातरम् हर हाथ तिरंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------

तू करो ढिठाई से तौबा, ना करो पढ़ाई से तौबा।
हो नहीं भलाई से तौबा, पर सभी बुराई से तौबा।
मेरे मालिक, मेरे राम, बन जाए सब इन्सान।
ईश्वर अल्ला तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान।
हर देहरी पर दीप हो खुशियाँ सब-रंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------

8 comments:

रविकर said...

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना बुधवार 17 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना बुधवार 17 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

Unknown said...

सुन्दर

कालीपद "प्रसाद" said...

bahut sundar !
उम्मीदों की डोली !

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

कौशल लाल said...

बहुत सुन्दर...

गुड्डोदादी said...

भाई से भाई क्यों, नित करता है प्रतिघात।
चाहत कि मानवता जगे, ना कोई दंगा हो।|
अश्रुपूर्ण अघात |
घर घर की कहानी सबकी जुबानी

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!