ना कोई नंगा हो, ना तो भिखमंगा हो।
चाहत कि रिश्ता आपसी घर घर में चंगा हो।।
धरती पर आई, लेकर खुशियाली।
सूखी मिट्टी में, भर दी हरियाली।
चाहत कि पहले की तरह निर्मल सी गंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------
सूखी मिट्टी में, भर दी हरियाली।
चाहत कि पहले की तरह निर्मल सी गंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------
ये जात-धरम की बात, सम्बन्धों पे आघात।
भाई से भाई क्यों, नित करता है प्रतिघात।
चाहत कि मानवता जगे, ना कोई दंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------
भाई से भाई क्यों, नित करता है प्रतिघात।
चाहत कि मानवता जगे, ना कोई दंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------
लो जाग रहे हैं लोग, जो मिटा दे सारे रोग।
अब छोड़ो भोग सुमन, और सीखो हर दिन योग।
चाहत कि वन्देमातरम् हर हाथ तिरंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------
अब छोड़ो भोग सुमन, और सीखो हर दिन योग।
चाहत कि वन्देमातरम् हर हाथ तिरंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------
तू करो ढिठाई से तौबा, ना करो पढ़ाई से तौबा।
हो नहीं भलाई से तौबा, पर सभी बुराई से तौबा।
मेरे मालिक, मेरे राम, बन जाए सब इन्सान।
ईश्वर अल्ला तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान।
हर देहरी पर दीप हो खुशियाँ सब-रंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------
हो नहीं भलाई से तौबा, पर सभी बुराई से तौबा।
मेरे मालिक, मेरे राम, बन जाए सब इन्सान।
ईश्वर अल्ला तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान।
हर देहरी पर दीप हो खुशियाँ सब-रंगा हो।
ना कोई नंगा हो ----------
8 comments:
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
आपकी लिखी रचना बुधवार 17 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आपकी लिखी रचना बुधवार 17 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
सुन्दर
bahut sundar !
उम्मीदों की डोली !
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर...
भाई से भाई क्यों, नित करता है प्रतिघात।
चाहत कि मानवता जगे, ना कोई दंगा हो।|
अश्रुपूर्ण अघात |
घर घर की कहानी सबकी जुबानी
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