जो लिखे थे आँसुओं से, गा सके ना गीत।
अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।।
दग्ध जब होता हृदय तो लेखनी रोती।
और चाहत काश! मेरे पास तू होती।
खोजतीं नजरें हमेशा है कहाँ मनमीत?
अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।।
और चाहत काश! मेरे पास तू होती।
खोजतीं नजरें हमेशा है कहाँ मनमीत?
अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।।
खोजता हूँ दर-ब-दर कि प्यार समझा कौन।
जो समझ पाया है देखो उसकी भाषा मौन।
सुन रहा बेचैन होकर मौन का संगीत।
अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।।
जो समझ पाया है देखो उसकी भाषा मौन।
सुन रहा बेचैन होकर मौन का संगीत।
अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।।
बन गया हूँ मैं तपस्वी याद करके रोज।
प्यार के बेहतर समझ की अनवरत है खोज।
खुद से खुद को ही मिटाने की अजब है रीत।
अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।।
प्यार के बेहतर समझ की अनवरत है खोज।
खुद से खुद को ही मिटाने की अजब है रीत।
अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।।
साँसें जबतक चल रहीं हैं मान लूँ क्यों हार?
और जिद पाना है मंजिल पा सकूँ मैं प्यार।
आज ऐसा है सुमन का, आज से ही प्रीत।
अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।।
और जिद पाना है मंजिल पा सकूँ मैं प्यार।
आज ऐसा है सुमन का, आज से ही प्रीत।
अबतलक समझा नहीं कि हार है या जीत।।
3 comments:
ये तो जीवंत संगीत है .... बेहतरीन !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (04-07-2014) को "स्वप्न सिमट जाते हैं" {चर्चामंच - 1664} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही बढ़िया
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