Monday, July 21, 2014

सहने लायक ही दूरी दे

रात मुझे इक सिन्दूरी दे
या मरने की मंजूरी दे

पागल होकर मर ना जाऊँ
सहने लायक ही दूरी दे

होते लोग हजारों घायल
खास नज़र की वो छूरी दे

खुशी बाँटना मत किश्तों में
खुशियाँ पूरी की पूरी दे

तुम संग जी ले सुमन खुशी से
ना जीने की मजबूरी दे

12 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

खुशी बाँटना मत किश्तों में
खुशियाँ पूरी की पूरी

बहुत उम्दा ग़ज़ल !
कर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !

स्वाति said...

bahut khoob.........

shalini rastogi said...

bahut khoob!

मनोज कुमार said...

बहुत ख़ूब!

Asha Lata Saxena said...


पागल होकर मर ना जाऊँ
सहने लायक ही दूरी दे

बहुत बढ़िया

विभूति" said...

मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...

विभूति" said...

मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...

Rewa Tibrewal said...

sundar prastuti

Unknown said...

बहुत खूब बेहतरीन

Unknown said...

बहुत बढ़िया

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

Unknown said...

बेहतरीन.....

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!