रात मुझे इक सिन्दूरी दे
या मरने की मंजूरी दे
पागल होकर मर ना जाऊँ
सहने लायक ही दूरी दे
होते लोग हजारों घायल
खास नज़र की वो छूरी दे
खुशी बाँटना मत किश्तों में
खुशियाँ पूरी की पूरी दे
तुम संग जी ले सुमन खुशी से
ना जीने की मजबूरी दे
या मरने की मंजूरी दे
पागल होकर मर ना जाऊँ
सहने लायक ही दूरी दे
होते लोग हजारों घायल
खास नज़र की वो छूरी दे
खुशी बाँटना मत किश्तों में
खुशियाँ पूरी की पूरी दे
तुम संग जी ले सुमन खुशी से
ना जीने की मजबूरी दे
12 comments:
खुशी बाँटना मत किश्तों में
खुशियाँ पूरी की पूरी
बहुत उम्दा ग़ज़ल !
कर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !
bahut khoob.........
bahut khoob!
बहुत ख़ूब!
पागल होकर मर ना जाऊँ
सहने लायक ही दूरी दे
बहुत बढ़िया
मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...
मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...
sundar prastuti
बहुत खूब बेहतरीन
बहुत बढ़िया
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बेहतरीन.....
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