सूरज को अभिमान पर, जुगनू में आलोक।
जब जब जीतीं चीटियाँ, हाथी के घर शोक।।
घोषित किया चुनाव जब, जंगल की सरकार।
अचरज में सब, ज्यों बने, साँप नेवले यार।।
जंगल के कानून से, होते कई कमाल।
रानी मधुरस पी रही, मधुमक्खी कंगाल।।
अगर कहीं हक ना मिले, छीन, माँग मत भीख।
चींटी सम हो एकता, देती हरदम सीख।।
धीरे धीरे हो रहीं, चिड़ियाँ सभी सचेत।
बिछे जाल के बीच से, चुग जातीं हैं खेत।।
जंगल सारे जीव का, मत करना अपमान।
कभी कभी, पर टूटता, शेरों का अभिमान।।
ताकत मिलने पर सुमन, मत खोना तुम होश।
कछुआ अक्सर जीतता, हारा है खरगोश।।
जब जब जीतीं चीटियाँ, हाथी के घर शोक।।
घोषित किया चुनाव जब, जंगल की सरकार।
अचरज में सब, ज्यों बने, साँप नेवले यार।।
जंगल के कानून से, होते कई कमाल।
रानी मधुरस पी रही, मधुमक्खी कंगाल।।
अगर कहीं हक ना मिले, छीन, माँग मत भीख।
चींटी सम हो एकता, देती हरदम सीख।।
धीरे धीरे हो रहीं, चिड़ियाँ सभी सचेत।
बिछे जाल के बीच से, चुग जातीं हैं खेत।।
जंगल सारे जीव का, मत करना अपमान।
कभी कभी, पर टूटता, शेरों का अभिमान।।
ताकत मिलने पर सुमन, मत खोना तुम होश।
कछुआ अक्सर जीतता, हारा है खरगोश।।
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को
दर्शन करने के लिए-; चर्चा मंच 1893
पर भी है ।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
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