Wednesday, April 29, 2015

मुस्कान

दोनों में अन्तर बहुत, आंखों से पहचान।
स्वाभाविक मुस्कान या, व्यवसायिक मुस्कान।।

जीवन वह जीवन्त है, जहाँ नहीं अभिमान।
सुख दुख से लड़ते मगर, चेहरे पर मुस्कान।।

ज्ञान किताबी ही नहीं, व्यवहारिक हो ज्ञान।
छले गए विद्वान भी, मीठी जब मुस्कान।।

अपनापन या है जहर, हो इसकी पहचान।
दर्द, प्रेम या और कुछ, क्या कहती मुस्कान।।

क्या किसका कब रूप है, होश रहे औ ध्यान।
घातक या फिर प्रेमवश, या कातिल मुस्कान।।

कभी जरूरत है कभी, मजबूरी श्रीमान।
प्रायोजित होती जहाँ, लज्जित है मुस्कान।।

जीव सभी हँसते कहाँ, आदम को वरदान।
हृदय सुमन का वास तब, स्वाभाविक मुस्कान।।

5 comments:

कमल said...

मुस्कान का चित्रण अच्छा किया

शिव राज शर्मा said...

मुस्कान का सुन्दर वर्णन ।बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-05-2015) को "प्रश्नवाचक चिह्न (?) कहाँ से आया" (चर्चा अंक-1962) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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मई दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

Rs Diwraya said...

अतिसुन्दर रचना

अभिषेक शुक्ल said...

जितना वाह किया जाए कम है।

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!