रस्ता माँगा राम समन्दर
दिया नहीं बदनाम समन्दर
देखा हरदम पास तुम्हारे
मचा हुआ कोहराम समन्दर
सोच रहा क्या नहीं चाहिए
तुझे कभी आराम समन्दर
सूरज के सँग मेल तुम्हारा
है प्यारा अभिराम समन्दर
सोये, जागे दुनिया वाले
करता रहता काम समन्दर
मीठापन आने तक पटको
सर को सुबहो-शाम समन्दर
साथ सुमन के जीत मिलेगी
बदलो मत आयाम समन्दर
2 comments:
आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शनिवार (18-04-2015) को "कुछ फर्ज निभाना बाकी है" (चर्चा - 1949) पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया ग़ज़ल
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