अच्छे दिन तो आ गए, लोग बने खुशहाल।
पता नहीँ क्यों खुदकुशी, करे कृषक बेहाल।।
वक्त समझ लो वक्त पर, वक्त बने तकदीर ।
वक्त वक्त की बात है, खींचे वक्त लकीर । ।
गांधी दिल से दूर अब, जाकर टंगे दिवार।
आए फिर वे नोट पर, रुका न भ्रष्टाचार।।
बोझिल कुछ दिन जिन्दगी, प्रियजन होते दूर।
आंसू भी निकले नहीँ, रोने को मजबूर।।
बेहतर तब संबंध जब, प्रीति हृदय में लोच।
प्यारे लगते लोग वे, जिनकी मिलती सोच।।
सह लो खुद की वेदना, भले चुभे ज्यों काँट।
पर अपनी सम्वेदना, नित आपस में बाँट।।
बेजुबान को दोष दे, बनते स्वयं महान।
खुद सुनते पर क्यूँ कहे, दीवारों के कान।।
दीवारें गिरतीं वही, पड़ती जहाँ दरार।
रिश्ते में पड़ती जहाँ, खड़ी करे दीवार।।
पता नहीँ क्यों खुदकुशी, करे कृषक बेहाल।।
वक्त समझ लो वक्त पर, वक्त बने तकदीर ।
वक्त वक्त की बात है, खींचे वक्त लकीर । ।
गांधी दिल से दूर अब, जाकर टंगे दिवार।
आए फिर वे नोट पर, रुका न भ्रष्टाचार।।
बोझिल कुछ दिन जिन्दगी, प्रियजन होते दूर।
आंसू भी निकले नहीँ, रोने को मजबूर।।
बेहतर तब संबंध जब, प्रीति हृदय में लोच।
प्यारे लगते लोग वे, जिनकी मिलती सोच।।
सह लो खुद की वेदना, भले चुभे ज्यों काँट।
पर अपनी सम्वेदना, नित आपस में बाँट।।
बेजुबान को दोष दे, बनते स्वयं महान।
खुद सुनते पर क्यूँ कहे, दीवारों के कान।।
दीवारें गिरतीं वही, पड़ती जहाँ दरार।
रिश्ते में पड़ती जहाँ, खड़ी करे दीवार।।
9 comments:
bahut acchi rachna ..
bahut acchi rachna ..
bahut acchi rachna ..
bahut acchi rachna ..
acchi rachna..
acchi rachna..
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-07-2015) को "कुछ नियमित लिंक और आ.श्यामल सुमन की पोस्ट का विश्लेषण" {चर्चा अंक - 2040} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत सुन्दर कविता.........प्यारी सी
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