जीवन में उत्थान मुसाफिर
और कभी ढालान मुसाफिर
वही कीमती जीवन जिसमें
बनी रहे मुस्कान मुसाफिर
सहज प्रेम हो ज्ञान मुसाफिर
सम्बन्धों की जान मुसाफिर
बिखर रहे परिवार आजकल
कारण बस अज्ञान मुसाफिर
बनी रहे तब शान मुसाफिर
जब दुखियों के मान मुसाफिर
जो समाज से मिला, बाँट दे
बचे तभी पहचान मुसाफिर
क्यों पैसे में जान मुसाफिर
जितने हैं धनवान मुसाफिर
शायद साथ इसे ले जाएं
जब होंगे बेजान मुसाफिर
कितना, कौन महान मुसाफिर
शिक्षक या भगवान मुसाफिर
किसकी पूजा पहले हो जब
दोनों एक समान मुसाफिर
अवसर को पहचान मुसाफिर
सीख गुरू से ज्ञान मुसाफिर
चूके तो पछतावा निश्चित
युग का यही विधान मुसाफिर
गुरू-चरण जब ध्यान मुसाफिर
तब शिक्षा उत्थान मुसाफिर
करो सुमन आजीवन पालन
शिक्षक, शिक्षा मान मुसाफिर
3 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-09-2015) को "मुझे चिंता या भीख की आवश्यकता नहीं-मैं शिक्षक हूँ " (चर्चा अंक-2090) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तथा शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर व सार्थक रचना ..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत ही उम्दा भावाभिव्यक्ति....
आभार!
इसी प्रकार अपने अमूल्य विचारोँ से अवगत कराते रहेँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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