करते जो भी शोर मुसाफिर
उतना वो कमजोर मुसाफिर
मुमकिन खुद से रोज निकालो
अपने मन का चोर मुसाफिर
अपने - अपने गीत मुसाफिर
सबकी अपनी रीत मुसाफिर
मौलिक स्वर हैं एक सभी के
मानवता से प्रीत मुसाफिर
हृदय प्रेम रसधार मुसाफिर
जीवन का संचार मुसाफिर
करने को तो लोग करे
हैं
पत्थर से भी प्यार मुसाफिर
क्या खुद की औकात मुसाफिर
जीवन बस जज्बात मुसाफिर
अंकुश जिसकी दिशा-दशा पे
तब सुधरे हालात मुसाफिर
किसके सर पे ताज मुसाफिर
आती जन को लाज मुसाफिर
गुरबत के कारण ही दिखता
घायल अभी समाज मुसाफिर
चलो शहर से गाँव मुसाफिर
बैठें पीपल छाँव मुसाफिर
यूँ आपस में मिलने खातिर
कहाँ शहर में ठाँव मुसाफिर
बढ़े कदम दिन-रैन मुसाफिर
मत रहियो बेचैन
मुसाफिर
हार - जीत से सीख लिया तो
चमक सुमन के नैन मुसाफिर
Wednesday, September 9, 2015
चलो शहर से गाँव मुसाफिर
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4 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, परमवीरों को समर्पित १० सितंबर - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
हम सब हैं मुसाफिर....बहुत अच्छा लिखा।
Beautiful
गाँव अब वे गाँव नहीं रहे सोच कर जाना मुसाफ़िर !
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