Monday, November 2, 2015

हार जीत होती नहीं

हार जीत होती नहीं, यह मन का विज्ञान।
प्रेम पथिक कब सोचते, नफा और नुकसान।।

अक्सर उसके नैन से, चलते रहते बाण।
घायल मीठे दर्द से, फिर भी मन को त्राण।।

हृदय अमावस रात में, जला प्रेम का दीप।
प्रीतम में अब प्राण यूँ, है मोती ज्यों सीप।।

प्रेम परस्पर हो जहाँ, लुटा वहाँ अनुराग।
मधुकर भी टिकता वहीं, मिलता जहाँ पराग।।

इक दूजे की भावना, समझ सुमन तो प्यार।
धरा प्यास जब जब जगी, बादल रोता यार।।

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (05-11-2015) को "मोर्निग सोशल नेटवर्क" (चर्चा अंक 2151) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Jay dev said...

बहुत खूब |

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