उठती नहीं है लोगों की आवाज संसदों में
हमलोग हैं कबूतर और बाज संसदों में
खामोश कौवे, कुत्ते कारण यही है शायद
वो देखते कि हो क्या रहा आज संसदों में
कल तक थे जो सड़क पर महलों में बैठे जा के
मुमकिन हुआ ये कैसे है क्या राज संसदों में
दिखते हैं जो विरोधी, मौसेरे भाई होते
अक्सर वे एक दूजे के हमराज संसदों में
सेवा की बात करके पहँचा सुमन सदन तक
आती नहीं है अब तो उसे लाज संसदों में
हमलोग हैं कबूतर और बाज संसदों में
खामोश कौवे, कुत्ते कारण यही है शायद
वो देखते कि हो क्या रहा आज संसदों में
कल तक थे जो सड़क पर महलों में बैठे जा के
मुमकिन हुआ ये कैसे है क्या राज संसदों में
दिखते हैं जो विरोधी, मौसेरे भाई होते
अक्सर वे एक दूजे के हमराज संसदों में
सेवा की बात करके पहँचा सुमन सदन तक
आती नहीं है अब तो उसे लाज संसदों में
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