Monday, February 15, 2016

हार भली कि हार भला

सूर्य लता में ज्यों छिपा, छनकर आती धूप।
उसी तरह इस जुल्फ में, तेरा अनुपम रूप।।

प्रेम दिवस है सामने, सजा हुआ बाजार।
सातों दिन में बांटते, अलग अलग उपहार।।

हरदिन हरपल प्रेम का, दिवस बना क्यों खास।
पावन सा जो प्रेम है, उसका यह उपहास।।

हार भली कि हार भला, करते रहो विचार।
एक हार में सीख है, एक हार श्रृंगार।।

जीवन चलता प्रेम से, करे प्रेम सब लोग।
पाकर खुश होते कई, पर कुछ कहते रोग।।

शब्दों से जिसने किया, खुशी खुशी स्वीकार।
क्यों उससे मिलता अभी, आधा आधा प्यार।।

पढा,लिखा,अनुभव किया, समझ सका ना प्यार।
कोशिश छोडा तो सुमन, जीवन है बेकार।।

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