Monday, February 15, 2016

हिया सचमुच हहरने लगा रात दिन

प्यार कैसे हुआ ये समझ ना सका, प्यार तुमसे मैं करने लगा रात दिन।
डूब जाऊं समन्दर में ये डर नहीं, तेरी आँखों से डरने लगा रात दिन।।

कान की बालियाँ गेसुओं की तरह, खेलती तेरे चेहरे से, जलता हूँ मैं।
नाक में एक नथिया गजब हो गया, सच कहूँ तुझपे मरने लगा रात दिन।।

रंग बिंदिया का जैसा है साडी वही, और नाखून सजाया उसी रंग में।
रूप ऐसा तुम्हारा तुम्हीं पे सनम, नैन जा कर ठहरने लगा रात दिन।।

कल्पना अप्सराओं की करते सभी, आजकल डर से धरती पे आती नहीं।
तेरी सूरत के आगे वो फीकी लगे, मन खुशी से सिहरने लगा रात दिन।।

बात किस्मत की है जो मुझे तू मिली, मेरी आँखों में तेरी ही सूरत बसी।
तुमसे दूरी कभी सोचता जो सुमन, हिया सचमुच हहरने लगा रात दिन।।

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