Wednesday, February 3, 2016

फिर ऐसा क्यूँ हे! भगवान?

कुछ  घर  में  है  सदा दिवाली,
शेष   घरों   में   क्यूँ   कंगाली?
तेरी  दुनिया,  तुम्हीं  पिता  हो
हम   सब   हैं   तेरी   सन्तान।
फिर  ऐसा  क्यूँ  हे! भगवान?

          जब तुम  कहते  पत्ते  हिलते,
          फिर क्यूँ चोर उचक्के मिलते?
          क्या तुम उसके भी प्रेरक जो,
          करता दुनिया  का   नुकसान।
          फिर  ऐसा  क्यूँ  हे! भगवान?

नाम  तुम्हारा  पूजित  कौन?
दुनिया वाले  फिर  भी मौन।
लूट - लूटकर  सभी  चढ़ावे,
मुल्ला, पण्डित  हैं धनवान।
फिर  ऐसा क्यूँ हे! भगवान?

          सब जीवों के जीवन - दाता,
          तुम ही सबके भाग्यविधाता।
          बलि - प्रथा  हो या  कुर्बानी,
          मूक - जीव  की जाती जान।
          फिर  ऐसा  क्यूँ हे! भगवान?

तुम  रखवाले फिर तो जागो,
या  इस दुनिया से तुम भागो।
माली  की  नजरों  में अक्सर, 
सभी  सुमन  हैं  एक  समान।
फिर  ऐसा  क्यूँ  हे! भगवान?

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