बदली है यूं सियासत मौसम बदल रहा है
इन्सान को ही इन्सां जैसे निगल रहा है
तकरीर गढते सारे अपने हिसाब से ही
हालात उससे बदतर जैसा कि कल रहा है
जो बैठते हैं चुन के शासन के मंदिरों में
गाली गलौज करते संसद फिसल रहा है
हाथों में ले के माचिस बातें अमन की करते
ऊपर से ठीक लगता अन्दर से जल रहा है
पीछे सुमन ये कितना जाएगा देश अपना
दुनिया में देश कितने, गिर के सम्भल रहा है
इन्सान को ही इन्सां जैसे निगल रहा है
तकरीर गढते सारे अपने हिसाब से ही
हालात उससे बदतर जैसा कि कल रहा है
जो बैठते हैं चुन के शासन के मंदिरों में
गाली गलौज करते संसद फिसल रहा है
हाथों में ले के माचिस बातें अमन की करते
ऊपर से ठीक लगता अन्दर से जल रहा है
पीछे सुमन ये कितना जाएगा देश अपना
दुनिया में देश कितने, गिर के सम्भल रहा है
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