Saturday, March 12, 2016

माँ का प्यार मिला दाई से

अगर लडाई हो भाई से
कुछ दिन जी लो तन्हाई से

समाधान निश्चित निकलेगा
जरा सोच तू गहराई से

एक, एक से ग्यारह बनता
जुड़ता घर, पाई पाई से

रौशन घर है, पर बच्चे को
माँ का प्यार मिला दाई से

कहते, रोज खजाना भरता
लोग मरे क्यों मँहगाई से

लाखों मंदिर मस्जिद जाते
कुछ की दूरी है सांई से

है विश्वास सुमन जोड़े तो
पर्वत बनता है राई से

No comments:

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
रचना में विस्तार
साहित्यिक  बाजार  में, अलग  अलग  हैं संत। जिनको  आता  कुछ  नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक   मैदान   म...
अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत  से  कब  हुआ, देश अपन ये मुक्त?  जाति - भेद  पहले  बहुत, अब  VIP  युक्त।। धर्म  सदा  कर्तव्य  ह...
गन्दा फिर तालाब
क्या  लेखन  व्यापार  है, भला  रहे  क्यों चीख? रोग  छपासी  इस  कदर, गिरकर  माँगे  भीख।। झट  से  झु...
मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ  मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ  जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को  वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ  अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते  लेकिन बात कहाँ कम करते  गंगा - गंगा पहले अब तो  गंगा, यमुना, जमजम करते  विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!