वो तेरा सपनों में आना,
आकर मुझको रोज सताना।
मगर हकीकत में क्यूँ लगता,
झूठा तेरा प्यार जताना।
दिल में है संदेह तुझे मैं दुश्मन या मनमीत कहूँ?
ऐसे जब हालात सामने कैसे तुझसे प्रीत करूँ?
लोग प्यार में अक्सर खोते,
बोझ बनाकर खुद को ढोते।
बात मुहब्बत की जो करते,
वही मुहब्बत पर क्यूँ रोते?
सोच रहा दिन रात इसे मैं हार कहूँ या जीत कहूँ?
ऐसे जब हालात सामने कैसे तुझसे प्रीत करूँ?
आसानी से प्यार जाताना,
कितना मुश्किल इसे निभाना।
चाहत पूरी, बढ़ती दूरी,
सुमन खोजता नया बहाना।
लोगों का ये छोटापन या इसे जगत की रीत कहूँ?
ऐसे जब हालात सामने कैसे तुझसे प्रीत करूँ?
आकर मुझको रोज सताना।
मगर हकीकत में क्यूँ लगता,
झूठा तेरा प्यार जताना।
दिल में है संदेह तुझे मैं दुश्मन या मनमीत कहूँ?
ऐसे जब हालात सामने कैसे तुझसे प्रीत करूँ?
लोग प्यार में अक्सर खोते,
बोझ बनाकर खुद को ढोते।
बात मुहब्बत की जो करते,
वही मुहब्बत पर क्यूँ रोते?
सोच रहा दिन रात इसे मैं हार कहूँ या जीत कहूँ?
ऐसे जब हालात सामने कैसे तुझसे प्रीत करूँ?
आसानी से प्यार जाताना,
कितना मुश्किल इसे निभाना।
चाहत पूरी, बढ़ती दूरी,
सुमन खोजता नया बहाना।
लोगों का ये छोटापन या इसे जगत की रीत कहूँ?
ऐसे जब हालात सामने कैसे तुझसे प्रीत करूँ?
2 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 18 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत ही सुंदर रच्ना है.
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