हड्डी टूटी पाँव की, पच्चीस दिन विश्राम।
परिजन संग बीता समय, कल से होगा काम।।
पढने का मौका मिला, नया लिखा कुछ रोज।
खुशियाँ मिलतीं है अगर, दुख में सुख की खोज।।
मिलने को आते रहे, रोज शहर के लोग।
यूँ तो खर्चा भी बढ़ा, अच्छा लगा सुयोग।
माता कहती थी मुझे, सुन लो एक विचार।
सुजन स्वजन आते सदा, भाग्यवान के द्वार।।
दर्द अभी भी पाँव में, पर हिम्मत कर आज।
पहले जैसा ही पुनः, सुमन करे सब काज।।
परिजन संग बीता समय, कल से होगा काम।।
पढने का मौका मिला, नया लिखा कुछ रोज।
खुशियाँ मिलतीं है अगर, दुख में सुख की खोज।।
मिलने को आते रहे, रोज शहर के लोग।
यूँ तो खर्चा भी बढ़ा, अच्छा लगा सुयोग।
माता कहती थी मुझे, सुन लो एक विचार।
सुजन स्वजन आते सदा, भाग्यवान के द्वार।।
दर्द अभी भी पाँव में, पर हिम्मत कर आज।
पहले जैसा ही पुनः, सुमन करे सब काज।।
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